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प्राचीन भारतीय इतिहास के स्त्रोत

 प्राचीन भारतीय इतिहास के स्त्रोत 


साहित्यिक स्त्रोत   . 

प्राचीन भारतीय साहित्यिक स्त्रोतों के रूप में धार्मिक साहित्य तथा धर्मेतर का अध्ययन किया जाता है।

धार्मिक साहित्य 

धार्मिक साहित्य को दो भागों में बांटा जा सकता है।

ब्राह्मण साहित्य तथा ब्राह्यणेत्तर साहित्य।

ब्राह्मण साहित्य 

ये प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्त्रोत है। यद्यपि भारत के प्राचीनतम साहित्य प्रधानता: धर्म संबंधी ही है , फिर भी ऐसे अनेक ब्राह्मण ग्रंथ है  जिनके द्वारा प्राचीन भारतीय सभ्यता एवम संस्कृति पर प्रकाश पड़ता है इसके अंतर्गत वेद,ब्राह्मण, उपनिषद्, आरण्यक उपवेद महाकाव्य पुराण त्या स्मृतियाँ आदि आती है । 

वेद 

वेद भारत की प्राचीनतम साहित्य है, जिसके सकलनकर्त्ता महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास को माना जाता है।

वेदो की कुल सख्या चार है - ऋग्वेद , यजुर्वेद, सामवेद , तया अथर्ववेद । 

इन चारो वेदो को साम्मिलित रूप से संहिता के नाम से जाता है। 

ऋग्वेद (1500 ई. पू . - 1000 ई.पू.) 

नोट ऋग्वेद की प्रासंगिता को देखते हुए यूनेस्को द्वारा इसे विश्व मानव धरोहर के साहित्य के रूप में शामिल किया गया है।

ऋग्वेद ऋचाबद्ध भारत का सबसे प्राचीनतम ग्रन्थ है। इसके अधिकतर मंत्र देव आह्वान से सम्बन्धित है ।

इसमें कुल 10 मंडल ,1028 सूक्त और 10580 ऋचाएं है।

ऋग्वेद के दूसरे से सातवें मण्डल सबसे प्राचीन माने जाते है , वही पहला एवं दसवां मण्डल सबसे अंत में जोड़े गए है। 

ऋग्वेद के मंत्रो का उच्चारण करने वाले पुरोहित हेतृ कहलाते है । 

यजुर्वेद 

इसमें यज्ञों से संबंधित नियम और विधान है ।ये एक 

कर्मकाण्डीय वेद है ।ये एक ऐसा वेद है , को गद्य व पद्य दोनो रूप में है। 

नोट यजुर्वेद की दो शाखाएं है।

1- शुक्ल यजुर्वेद 

2- कृष्ण यजुर्वेद  

शुक्ल यजुर्वेद केवल पद्य में है, वही कृष्ण यजुर्वेद गद्य और पद्य दोनो में है। 

यजुर्वेद के कर्मकाण्डो को संपन्न कराने वाले पुरोहित को अध्वर्यु कहा जाता है। 


सामवेद 

 इसमें मुख्यत: यज्ञों के अवसर पर गाए जाने वाले मंत्रों का संग्रह है। इसमें मुख्यत:  सूर्य की स्तुति के मंत्र है। जिसे  गाने वाले को उदगाता कहा जाता है। 

नोट सप्तस्वरो ( सा , रे, गा, मा, प, ध, नि) की उत्पत्ति सामवेद से हुई है। अत: सामवेद को भारतीय संगीत का जनक कहा जाता है।

सामवेद के अधिकांश मंत्र ऋग्वेद से लिए गए है, इसके अपने मंत्रों की संख्या सिर्फ 75 है। 

सामवेद की तीन शाखाएं है ।

कौथुमीय, राणायनीय, तथा जैमिनीय  

अथर्ववेद

ये अंतिम वेद है इसकी रचना अथर्व तथा अंगिरस ऋषि द्वारा की गई थी।इन्ही के नाम पर ही इसका नाम अथर्ववेद पड़ा ।इसे अथर्वांगिरस वेद भी कहा जाता है।

अथर्ववेद में जादू टोना वशीकरण ,भूत , प्रेत रोग निवारण तथा विभिन्न औषधियों का वर्णन है।





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