खसका दंड।खसका दंड का प्रयोग
ये भी आरेखन दण्ड की तरह ही होता है। परन्तु इसके ऊपरी सिरे पर जरीब की हैंडल फसाने के लिए एक खांचा बना रहता है।जिसकी सहायता से खाई या झाड़ियों वाली स्थान में जरीब के द्वारा नाप ली जाती है।
खूँटी। खूँटी का कार्य
खूँटी को सर्वेक्षण स्टेशनो की पहचान करने के लिए उस बिंदु पर गाड़ दी जाती है।ये लकड़ी की बनी होती है। उसके ऊपर स्टेशन का नाम लिख दिया जाता है।
उसकी लम्बाई 15 cm से 20 cm तक होती है।
इसका शीर्ष 5cmx5cm वर्गाकार होता है।
साहुल।साहुल का कार्य
साहुल के द्वारा कम्पास , लेवल, थियोडोलाइट, आदि उपकरण को स्टेशन बिंदु पर केन्द्रण करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
इसके अतिरिक्त ढालू जमीन पर जरीब मापन करते समय तथा आरेखन दण्ड को ठीक ऊर्ध्वाधर खड़ा करने में साहुल द्वारा जांच की जाती है।
ये धातु का शंकुनुमा पिण्ड होता है।जिसके शीर्ष में एक मजबूत डोरी बंधी होती हैं।
झाडियाँ। झाडियाँ का कार्य
आरेखन दण्डो दूर से पहचान करने के लिये,इनके शीर्ष पर कपड़े की चौकोर लाल या सफेद रंग की झाडियाँ बांध दी जाती है।
समकोण डालने के उपकरण । उपकरण की सहायता से समकोण डालने की विधि।
सर्वे रेखा पर लम्ब डालने के लिए जिन उपकरणों का प्रयोग किया जाता है।उन्हें समकोण डालने वाले यंत्र कहते है।जो निम्न है।
(1) खुला गुनिया (Open cross staff)
(2) प्रकाशीय गुनिया( Optical Square)
(1) खुला गुनिया (Open cross staff)
ये एक सरल प्रकार का यंत्र होता है।इसके मदद से किसी सर्वे लाइन पर समकोण बनाया जाता है। ये तीन प्रकार का होता है।
(i) स्वास्तिक खुला गुनिया(Simple Cross Staff)
(ii) फ्रेंच गुनिया (French Cross Staff)
(iii) समायोज्य गुनिया(Adjustable Cross Staff)
(i) स्वास्तिक खुला गुनिया(Simple Cross Staff)
ये लकड़ी या धातु का बना होता है।
धातु की स्वास्तिक गुनिया क्रास ब्लॉक में दो जोड़ी खड़ी दर्श झिरियाँ कटी होती है।जो एक दूसरे से ठीक समकोण पर होती है।एक जोड़ी ऊर्ध्व झिरी बहुत महीन तथा दूसरी जोड़ी जो ठीक उसके सम्मुख होती है, कुछ चौड़ी होती है,जिसमे एक धागा या घोड़े का बाल बंधा रहता है।गुनिया को हाथ से पकड़ने के लिये उसके तली पर एक हैंडल लगा रहता है।अथवा उसे दंड पर कसकर जमीन में गाड़ा भी जा सकता है।
सर्वेक्षण रेखा के जिस बिंदु पर समकोण निकालना हो, वहॉ खड़े होकर ,गुनिया की एक दृष्टि रेखा को सर्वेक्षण रेखा के ठीक
सीध में लाया जाता है। अब गुनिया यंत्र से जो दूसरी दृष्टि रेखा उपलब्ध होगी,वह पहली दृष्टि रेखा के ठीक 90° पर होगी।
अब इस समकोण दृष्टि रेखा पर आरेखन दण्ड गाड़ दिया जाता है।दूसरी जोड़ी से समकोण दृष्टि रेखा देखने के लिए, घूम कर इस पर आना होता है।परंतु ऐसा करते समय गुनिया की मूल स्थिति नहीं बदलनी चाहिए।
(ii) फ्रेंच गुनिया (French Cross Staff)
इस प्रकार की गुनिया में 8 फलको वाली एक खुली डिब्बी होती है,जिसके एकांतर में ऊर्ध्व दर्श झिर्री तथा ऊर्ध्व खिड़की झिर्री बनी होती है।खिड़की झिर्री से महीन तार या घोड़े का बाल लगा रहता है।इस प्रकार इस गुनिया से एक दूसरे से 45° का कोण बनाते हुए चार दृष्टि रेखाएं निकलती है।इस गुनिया से रेखाओं पर समकोण भी डाले जा सकते है,और 45° के कोण भी स्थापित किए जा सकते है।
(iii) समायोज्य गुनिया(Adjustable Cross Staff)
इस गुनिया में दो बेलन होते है जिनको ऊंचाई और व्यास समान होता है।बेलन का व्यास 8 cm तथा ऊंचाई 5 cm होती है।ये दोनो बेलन एक दूसरे पर इस प्रकार सेट किए जाते है।की ऊपरी सिलिण्डर निचले सिलिण्डर पर क्षैतिज समतल में घुमाया जा सके। दोनो सिलिण्डर में दर्श झिर्रिया कटी रहती हैं।निचले सिलिण्डर की परिधि पर डिग्री व अंश के निशान बने होते है जबकि ऊपरी सिलिण्डर पर इनके अनुरूप एक वार्नियर सटा रहता है। ये गुनिया क्षेत्र में समकोण बनाने के काम आता है।
(2) प्रकाशीय गुनिया( Optical Square)
प्रकाशीय गुनिया से रेखा पर अधिक परिशुद्धता से समकोण बनाया जा सकता है।
प्रकाशीय गुनिया तीन प्रकार के होते है।
i) गोल प्रकाशीय गुनिया
ii) भारतीय प्रकाशिय गुनिया
iii) प्रिज्मीय प्रकाशिय गुनिया
i) गोल प्रकाशीय गुनिया
इस प्रकार की गुनिया एक गोल डिब्बी होती है।जिसका व्यास
5 सेमी० तथा ऊंचाई 125 सेमी० होती है।इसके अंदर दो खड़े दर्पण A तथा B इस प्रकार स्थापित किये जाते है।की उनके बीच ठीक 45° का कोण बनता हो।
दर्पण A पूरी तरह से प्रावर्तित होता है,जबकि दर्पण B का आधा ऊपरी भाग दर्पणी होता है।और नीचे का आधा भाग साधारण कांच का रहता है।दर्पण A की दिशा को ऊपर ढक्कन में लगे एक पेंच की सहायता से समायोजित किया जा सकता है।जबकि दर्पण B पूरी तरह आबद्ध होता है।
इन दर्पणों के सामने ,डिबिया के ऊर्ध्वधर फलक में तीन झिर्री बनी होती है। एक नेत्र झिर्री E , इसके ठीक सामने खिड़की झिर्री G तथा दोनो को मिलाने वाली रेखा के समकोण वाली तीसरी झिर्री F आयताकार होती है।
ये एक सरल प्रकार का पीतल का बना प्रकाशिय गुनिया होता है।इसकी आकृति समलम्बाकार होती है।ये एक खोखली डिबिया जैसी होती है, जिसका चौड़ा सिरा पूरा खुला होता है और इसके सामने के सिरा बंद होता है।डिबिया के तिरछी फलको पर 45° के कोण पर एक एक दर्पण लगा होता है।दोनो दर्पणो के ऊपरी भाग में आयताकार झिरी होती है।
iii) प्रिज्मीय प्रकाशिय गुनिया
ये गुनिया भी प्रकाशिय गुनिया के सिद्धांत पर कार्य करती है। परन्तु प्रिज्मीय गुनिया प्रकाशिय गुनिया से अधिक विश्वसनीय होता है।तथा इससे कार्य करना सरल होता है। इस गुनिया में प्रिज्म कांच की फलक को ही 45° पर बनाया जाता है,जिससे परावर्तित किरणे अधिक प्रकाशित होकर प्रेक्षक तक पहुंच सके।
फीते या जरीब से लम्ब डालना
जरीब सर्वे बहुत अधिक परिशुद्ध नही होता है। अत: कार्य की दृष्टि से फीते या जरीब से लम्ब डालना संतोष जनक रहता है।
फीते द्वारा लम्ब डालने की प्रक्रिया निम्न है।
1) जरीब रेखा के किसी बिंदु से लम्ब निकालना
हम जानते है , की त्रिकोणमिति के अनुसार 3,4,5 (इकाई) वाली त्रिभुज की 3 व 4 भुजाओं के मध्य बनने वाला कोण
सदा समकोण होता है इसी तथ्य के आधार पर फीते की मदद से समकोण बनाते है।इसे 3-4-5 विधि भी कहते है।
जरीब रेखाओं का आरेखन
दो बिंदुओ के बीच रेखा को सीधा करने के लिए उनके बीच अंतरवर्ती बिंदुओ को स्थापित करना आरेखन या सीध बांधना कहलाता है।
जब दो बिंदुओ के बीच की दूरी जरीब की लम्बाई से अधिक होती है।तो ऐसी अवस्था में बिंदुओ को सीधा करना पड़ता है।जिससे की जरीब की माप में त्रुटि न आ जाए। इसके लिए उनको बीच बीच में थोड़ी दूरी पर अंतरवर्ती बिंदुओ को स्थापित करना पड़ता है।
रेखाओं का आरेखन करने के लिए आरेखन दण्ड का प्रयोग किया जाता है।दो स्टेशनों के बीच अंतरवर्ती बिंदुओ की पहचान करके उन पे आरेखन दण्ड लगा दिया जाता है।
आरेखन करने की निम्न तीन विधियां है।
i) प्रत्यक्ष आरेखन विधि
ii) अप्रत्यक्ष आरेखन विधि
iii) यादृच्छिक रेखा विधि
i) प्रत्यक्ष आरेखन विधि
प्रत्यक्ष आरेखन तब किया जाता है।जब दोनो स्टेशन आपस में दिखाई देते हो।इस विधि मे दोनो स्टेशनों को सीधा करने के लिए आंख से देख कर इनके बीच आरेखन दण्ड लगाते है।या किसी प्रकाशीय यंत्र की सहायता से लाइन को सीधा करते है। प्रकाशीय यंत्र में लाइन रेंजर या थियोडोलाइट का प्रयोग किया जा सकता है।
आंख द्वारा आरेखन
विधि
इस विधि द्वारा आरेखन करने के लिए सर्वेक्षक को एक सहायक की आवश्कता होती है
सबसे पहले दो स्टेशन निर्धारित करेंगे माना वो स्टेशन A और B हैं। इसके बिंदु A और B पर आरेखन दण्ड सीधा गाड़ दिया जाएगा
अब सर्वेक्षक बिंदु A से लगभग आधा मीटर पीछे खड़ा होगा और उसका सहायक एक आरेखन दण्ड लेकर दोनो बिंदुओ के मध्य अन्दाज से ऐसे बिंदु पर खड़ा होगा जो A और B के लगभग सीध में हो और A से एक जरीब से कम दूरी पर हो।और उसका मुख बिंदु A की तरफ हो।
अब सर्वेक्षक A से B के बीच के आरेखन दण्ड को एक आंख से देखेगा और सहायक को हाथ से इशारा करके दाएं या बाएं जाने को कहेगा जब तीनों दण्ड एक सीध में आ जाएंगे तो सहायक को उसी जगह पर आरेखन दण्ड को गाड़ने के लिए कहेगा इस प्रकार रेखा A-B को सीधा किया जाता है।
लाइन रेंजर द्वारा आरेखन
जब रेखाओं की लम्बाई अधिक हो तो लाइन रेंजर का प्रयोग अधिक सुविधाजनक रहता है।
लाइन रेंजर ।
ये एक प्रकाशिय उपकरण होता है।जो सर्वे रेखाओं पर अतिरिक्त बिंदु स्थापित करने के काम आता है।इसमें दो समकोणीय सम द्विबाहु त्रिभुजीय प्रिज्म एक दूसरे के ऊपर इस प्रकार रखी जाती है कि उनके कर्ण एक दूसरे को काटे अपातीय किरणों के परावर्तन के लिये दोनो प्रिज्म के कर्णो को पारावर्तित किया जाता है।दोनो प्रिज्म धातु के फ्रेम में सैट की जाती है।उपकरण को पकड़ने के लिये ,इस की तली पर हैंडल लगा रहता है,जिसके हुक में साहुल लटकाया जा सकता है।
लाइन रेंजर का समायोजन ,,,,
लाइन रेंजर में दो प्रिज्म होती है।जिसमे से एक पूर्ण रूप से आबद्ध होती है।जबकि दूसरी प्रिज्म एक स्क्रू द्वारा समंजित की जा सकती है।जब उपकरण समंजन में नहीं होता है,तब थियोडोलाइट उपकरण द्वारा तीन दण्ड एक सीध में गाड़े जाते है। प्रेक्षक लाइन रेंजर मध्य के दण्ड पर सेट करता है।और उपकरण में सिरे वाले दोनो के प्रतिबिम्ब देखते हुए स्क्रू घुमा कर प्रिज्म को समायोजित करता है,ताकि दण्डो के प्रतिबिम्ब एक सीध रेखा पर दिखाई पड़ने लगे।
NIDHI SINGH
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Present sir
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ReplyDeleteSangharsh gupta
ReplyDeleteP sir
P
ReplyDeleteArpita Sharma
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P
ReplyDeleteARPITA SHARMA
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Arpita Sharma
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Arpita Sharma
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Ritesh
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P sir
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