अनुच्छेद 39 ( a )
अनुच्छेद 40
अनुच्छेद 41
अनुच्छेद 42
अनुच्छेद 43
अनुच्छेद 44
समान नागरिक संहिता, इसका तात्पर्य यह है कि सरकार का दायित्व है की वो सामाजिक कानून यानी अपराध संबंधी कानून जो सब के लिए एक है,सारे धर्मो के लिए एक है और नागरिक कानून यानी घरेलु मामलो के संबंध में कानून जैसे विवाह, तालाक आदि, ये कानून धर्मो के अनुसार अलग अलग होते है, इन सभी कानूनों को समान करने का दायित्व सरकार को दिया गया है।
अनुच्छेद 45
सरकार को 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों को शिक्षा प्राप्त कराना।
अनुच्छेद 46
सरकार को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के सम्बन्ध में उनकी शिक्षा, आर्थिक हित, सामाजिक न्याय के विषय में कुछ विशेष प्रावधान या कुछ विशेष प्रबंध करने चाहिए।
अनुच्छेद 47
सरकार को मधनिषेध का दायित्व दिया गया है, इसका तात्पर्य है की सरकार को नशीले पदार्थ जैसे शराब आदि पर प्रतिबन्ध लगाने का दायित्व है और सरकार पोषाहार और स्वास्थ्य सुविधाओं का प्रबंध करे।
अनुच्छेद 48
इसमें कृषि, पशुपालन और दुधारू पशु जैसे गाय, भैंसे आदि संबंधित प्रावधान दिए गए है और सरकार को इनको बढ़ावा देने का दायित्व दिया गया है।
अनुच्छेद
48 ( a )
यह प्रावधान 42वे संविधान संशोधन 1976 द्वारा संविधान में जोड़ा गया, इसमें पर्यावरण संरक्षण के सम्बन्ध में बताया गया है, पर्यावरण को बढ़ावा देना और वृक्षारोपण जैसे कार्यों को बढ़ावा देना।
अनुच्छेद 49
सरकार को दायित्व दिया गया है कि वो राष्ट्रीय महत्वो के स्मारक, स्थलों का संरक्षण करे जैसे क़ुतुब मीनार, लाल किला आदि।
अनुच्छेद 50
कार्यपालिका और न्यायपालिका का पृथक्करण, दोनों को अलग अलग कार्य करना चाहिए।
अनुच्छेद 51
अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा की अभिवृद्धि, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शान्ति को बढ़ावा, सुरक्षा को बढ़ावा।
मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्वों से जुड़े विवाद
1. कशवानंद भारती बनाम केरल वाद 1973 में सर्वोच्च न्यायलय ( supreme court ) ने ये कहा की मौलिक अधिकारों का दर्जा राज्य के नीति निर्देशक तत्व से ऊपर है और ऐसे में सरकार को मौलिक अधिकारों का हनन नहीं करना चाहिए और मौलिक अधिकारो को ही प्रधानता देनी चाहिए।
2. 42वे संविधान संशोधन में सरकार ने यह निर्णय लिया कि राज्य के नीति निर्देशक तत्व का दर्जा मौलिक अधिकारो से ऊपर है, और नीति निर्देशक तत्वों की पूर्ती के लिए कुछ मौलिक अधिकारो को दबाया जा सकता है।
3. मिनर्वा मिल्स वाद 1980 में न्यायपालिका ने यह निर्णय लिया की न मौलिक अधिकार श्रेष्ठ है और न ही राज्य के नीति निर्देशक तत्व श्रेष्ठ है, दोनों एक दुसरे के पूरक है और दोनों का उद्देश्य एक ही है, जनता को अधिक से अधिक सुविधाए प्राप्त करना और दोनों के बीच में संतुलन बनाने की बात कही गयी।
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