What is compass surveying? Type of compass.
दिकसूचक सर्वेक्षण( compass surveying)
दिकसूचक सर्वेक्षण में सर्वे रेखाओं की दिशा और परस्पर क्षैतिज स्थिति ज्ञात की जाती है। इसमें जो दिशा ज्ञात की जाती है।वो किसी अन्य स्थिर रेखा के सन्दर्भ से ली जाती है।
जब भूमि क्षेत्र काफी घना और बड़ा हो जिसके कारण इसे त्रिभुजों में बांटना ,संयोग व जांच रेखाएं डालना मुश्किल हो तो ऐसी जगह पर दिकसूचक सर्वेक्षण किया जाता है।
दिकसूचक सर्वेक्षण में क्षेत्र को चारो ओर से घेरती हुई तथा एक दूसरे से क्रमण में सती हुई सर्वे रेखाये डाली जाती है। इनकी लम्बाई फीते से नाप लेते है और दिशा किसी स्थिर रेखा के सन्दर्भ में , किसी कोण मापने वाले यंत्र से माप ली जाती है।
चंक्रम (Traverse)
सर्वे स्टेशनो को मिलाने वाली रेखाओ से बने ढांचे को चंक्रम कहते हैं।जिनकी लम्बाई और दिशा दोनों ज्ञात हो ।
इसे माला रेखा अथवा बंधन रेखा भी कहते है।
जब इन रेखाओं पर सर्वेक्षण का काम करते है तो उसे चंक्रमण कहा जाता है।
चंक्रम के प्रकार(Types of Traverse)
सर्वेक्षण में चंक्रम दो प्रकार का होता है।
(i) बन्द चंक्रम
(ii) खुला चंक्रम
(i) बन्द चंक्रम(Close Traverse)
जब सर्वे करते हुए जिस बिंदु से कार्य शुरू किया जाता है उसी बिंदु पर कार्य करते हुए वापस पहुंच कर समाप्त करते है।तो इस प्रकार जो परिपथ बनता है उसे बन्द चंक्रम कहा जाता है।
जैसे नगरों, झीलों मैदानों जंगलो के सर्वे के लिए बंद चंक्रम सर्वेक्षण अपनाया जाता है।
बंद चंक्रम की दिशा दक्षिणावर्त या वामावर्त हो सकती है।
(ii) खुला चंक्रम( Open Traverse)
जब सर्वे का कार्य किसी एक बिन्दु से शुरू करके किसी अन्य बिन्दु पर समाप्त किया जाता है।तो ऐसे सर्वेक्षण को खुला चंक्रम कहते है।
जब सड़क ,रेलमार्ग,नदी, नहर ,सुरंगों का सर्वेक्षण करना होता है। तो वहा खुला चंक्रम सर्वेक्षण किया जाता है।
कोण मापन के उपकरण(instrument used for measuring angle)
कोण मापन के लिए निम्न उपकरण प्रयोग किए जाते है।
(1) दिक् सूचकMagnetic Compass)
(2) बक्स सेक्सटेन्ट (Box sextant)
(3) थियोडोलाइट (Theodolite)
दिक्सूचक(Compass)
सर्वक्षण में सर्वे रेखाओं का चुम्बकीय दिकपात मापने के लिए दिक् सूचक का प्रयोग किया जाता है।
ये तीन प्रकार के होते है।
(1) सर्वेक्षण दिक् सूचक(Survey Compass)
(2) प्रिज्मी दिक् सूचक (Prismatic Compass)
(3) ट्रफ दिकसूचक (Trough Compass)
दिकसूचक उपकरण के घटक(Parts of a Compass)
(1) चुम्बकीय सूई
(2) कीलक
(3) आशंकित चक्री
(4) दर्श बेधिका
(5) दृश्य बेधिका
(6) दृष्टि रेखा(Line of sight)
(7) प्रिज्म , धूप कांच
(8) उत्थापक पिन व उत्थापक लीवर
(9) ब्रेक पिन व स्प्रिंग ब्रेक
(10) दिक सूचक बक्सा
(11) त्रिपाद
(1) चुम्बकीय सूई(Magnetic needle)
ये दिक्सूचक का सबसे मुख्य घटक होता है।ये इस्पात की बनी हुई चुंबीकृत पतली सूई होती है।जिसको बक्से के अंदर एक उर्ध्व कीलक पर इस प्रकार टांग दिया जाता की वह क्षैतिज समतल में स्वतंत्र घूम सके। जब ये कीलक पर रुक जाती है।तो इसकी नोक चुम्बकीय याम्योत्तर की ओर होती है।
(2)कीलक(Pivot)
दिकसूचक बॉक्स के मध्य में एक नोकदार कील खड़ी स्थिति में लगी रहती है।जिसके ऊपर कम्पास की सुई टिकी रहती है।और मुक्त घूमती रहती है।
(3) आशंकित चक्री(Graduated ring)
ये एल्यूमिनिम धातु की छल्ले की की तरह की गोल चक्री होती है।जो चुम्बकीय सूई से जुड़ी रहती है। चक्री पर डिग्री व आधी डिग्री के निशान बने होते है। प्रिज्मी दिकसूचक में ये निशान 0° से 360° तक दक्षिणावर्त दिशा में बढ़ते हुए उल्टे खुदे होते है।जो दर्श स्लिट के साथ लगी प्रिज्म द्वारा पढ़ने पर सीधे व बड़े आकार में दिखाई पड़ते है।
(4) दर्श बेधिका(Eye Vane)
ये एक पीतल की पतली ऊर्ध्वाधर पट्टी होती हैं जो दिकसूचक बॉक्स के किनारे पर ,कब्जे द्वारा जुड़ी होती है और प्रेक्षण के समय सीधी खड़ी की जा सकती है।दर्श बेधिका में एक पतली ऊर्ध्वाधर झिर्री कटी रहती है।आंख को इस झिररी से सटा कर लक्ष्य को बेधा जाता है। प्रिज्मी दिकसूचक में दर्श बेधिका के साथ कांच की एक प्रिज्म लगी रहती है। जिससे आशंकित चक्री पर पाठयांक पढ़ने में सरलता रहती है।
(5) दृश्य बेधिका (Object Vane)
ये एक ऊर्ध्वाधर पतली पट्टी होती है जो पीतल की बनी होती है।इसमें एक झिर्री होती है जिसमे ऊर्ध्वाधर घोड़े का बाल या पतली तार लगी रहती है।ये तार दर्श बेधिका के एकदम सामने लगा रहता है।
(6) दृष्टि रेखा(Line of sight)
जब दर्श बेधिका, दृश्य बेधिका ,और लक्ष्य तीनों एक सीध में आ जाते है तो इनको मिलाने वाली काल्पनिक रेखा को दृष्टि रेखा कहते है।
(7) प्रिज्म(Prism)
दिकसूचक में दर्श बेधिका के साथ एक प्रिज्म लगा रहता है।प्रिज्म के क्षैतिज व ऊर्ध्वाधर फलक उत्तल होती है। इस कारण चक्री के निशान का आवर्धित प्रतिबिंब दिखाई पड़ता है।और पठन सरल हो जाता है।
(8) उत्थापक पिन व उत्थापक लीवर (Lifting pin and lever)
दिकसूचक में लगी कीलक को घिसावट से बचाने के लिए इसमें एक उत्थापक पिन व उत्थापक लीवर की व्यवस्था की जाती है।जिसकी मदद से काम खत्म होने के बाद कम्पास की सूई को कीलक से थोड़ा ऊपर उठा दिया जाता है।जिससे ये सूई कांच के ढक्कन से चिपक जाती है और स्थिर हो जाती है।
(9) ब्रेक पिन व स्प्रिंग ब्रेक (Brak Pin and Spring Brake)
जब कम्पास से काम किया जा रहा हो उस समय उस पर लगी आशंकित चक्री पूरी तरह स्थिर होना चाहिए अन्यथा उसकी पाठयांक में त्रुटि आ जायेगी ।इसके लिए दृश्य बेधिका की तरफ लगा ब्रेक पिन दबा दिया जाता है।इससे पिन के आगे लगा स्प्रिंग ब्रेक आशंकित चक्री को छूने लगता है और चक्री स्थिर हो जाती है।
(10) दिकसूचक बॉक्स (Compass Box)
दिकसूचक का बक्सा 100-150 mm व्यास का लोहे की धातु का बना होता है।इसके केंद्र में कीलक तथा परिधि पर दर्श और दृश्य बेधिका लगी होती है।कीलक के ऊपर चुम्बकीय सूई टंगी रहती हैं।कीलक ,सूई व आशंकित चक्री की सुरक्षा के लिए बॉक्स के ऊपर कांच का ढक्कन लगा रहता है।बॉक्स को बंद करने के लिए उसके ऊपर धातु का ढक्कन भी लगा होता है।
(11) त्रिपाद(Tripod)
प्रिज्मी दिक्सूचक को प्रयोग करने के लिए ट्राइपॉड का प्रयोग किया जाता है।ये हल्के प्रकार के ट्राइपॉड या 18 मीटर लंबी टांग वाला छड़ जिसे जेकब स्टाफ कहते है।इसका भी प्रयोग किया जा सकता है।
प्रिज्मी दिक्सूचक को हाथ में पकड़ कर भी प्रयोग किया जा सकता है।
ट्राइपॉड के शीर्ष पर धातु का ढक्कन लगा होता है।जिसमे चूड़ियां कटी होती है।जिस पर दिक्सूचक को रख कर कस दिया जाता हैं।
ट्राइपॉड की तीन टांगे होती है।इसे अच्छी और उपचारित लकड़ी से बनाया जाता है।इसके शीर्ष पर बाल व सॉकेट की व्यवस्था होती है।
चुंबकीय सुई की नति या नमन
कंपास की सुई स्वतंत्र व मुक्त होने पर भी अपनी कील पर पूर्णत: क्षैतिज नहीं रहती है।उत्तरी गोलार्ध में सुई का उत्तरी सिरा तथा दक्षिणी गोलार्ध में सुई का दक्षिणी सिरा नीचे की ओर 90° के कोण तक झुक जाता है, परन्त विषुवत रेखा पर सुई पूर्णत: क्षैतिज रहती है , चुंबकीय सुई का इस प्रकार नीचे की ओर झुकना इसका नति कहलाता है।
Nidhi singh
ReplyDeletePRESENT
Present sir
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ReplyDeleteGyanendra pratap singh
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P
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ReplyDeleteSangharsh gupta
ReplyDeleteP sir
P
ReplyDeleteArpita Sharma
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Arpita Sharma
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ReplyDeleteArpita Sharma
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Priyanshu sharma
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Balram Jaiswal
ReplyDeleteBalram Jaiswal
ReplyDeleteP sir