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CMEAD chapter 3 part 4

 नेटवर्क तकनीक (Network technique) 

हम जानते है कि बार चार्ट केवल छोटे प्रोजेक्ट के लिए ही सही रहता है।जब परियोजनाये बड़ी और लम्बे समय तक चलने वाली हो तो वहा पर बार चार्ट उपयोगी नहीं रह जाता है।इसी कारण नेटवर्क तकनीक का विकास हुआ ।नेटवर्क तकनीक बार चार्ट से अधिक बेहतर तकनीक है।जिसकी मदद से कार्य को बेहतर तरीके से शुरू से समाप्ति तक संचालन किया जा सकता है।

इसके अंतर्गत मुख्य दो विधियां है।

(1) क्रान्तिक पथ विधि (Critical Path Method) (C.P.M 

(2) कार्यक्रम मूल्यांकन तथा पुनरीक्षण विधि 

(1) क्रान्तिक पथ विधि (Critical Path Method) (C.P.M)

इस विधि के अनुसार विभिन्न क्रियाओं को एक जाल आरेख के रूप में दिखाया जाता है।जाल आरेख इस प्रकार होता है। कि इसे देखते ही परियोजना की पूरी रूप रेखा साफ हो जाती है।और इससे अलग अलग क्रियाओं का अनुक्रम और इसमें लगने वाले समय का अंदाजा हो जाता है। और ऐसी क्रियाये जिसके कारण परियोजना में देर हो सकती वो भी सामने आ जाती है जिससे प्रबंधक उसके ओर अधिक ध्यान दे सकता है।            क्रान्तिक पथ विधि का विकास डुपोन्ट के मोर्गन आर - वाकर और रिमिंगटन के जम्स ई - केली ने 1957 में किया था।

क्रान्तिक पथ विधि को C.P.A( critical path analysis)

C.P.S (Critical path Scheduling) 

N.M.T (Network Management Technique) आदि नामो से भी जाना जाता है। 

नेटवर्क द्वारा समय का निर्धारण( Scheduling by network) 

परियोजना के  के अलग अलग क्रियाओं में लगने वाले समय को निर्धारित करके परियोजना का कुल समापन कार्य ज्ञात करना ,समय निर्धारण कहलाता है।

इसके मुख्य चरण निम्न है।

(1) परियोजना को अलग अलग संक्रियाओं में तोड़ लिया जाता है, जैसे नींव खोदना कंक्रीट डालना आदि।

(2) प्रत्येक संक्रिया को पूर्ण करने में लगने वाला अनुमानित समय ज्ञात कर लिया जाता है।

(3) संक्रियाओ का निर्माण पद्धति के अनुसार ,अनुक्रम बना लिया जाता है।जैसे नीव की खुदाई के बाद कंक्रीट डालना ।

(4) इसके बाद सभी संक्रियाओ और घटनाओं का आपसी सम्बन्ध दिखाते हुए ,नेटवर्क बनाना।

(5) संक्रियाओ के अनुक्रम अनुसूची बनाकर क्रान्तिक पथ पर पड़ने वाली संक्रियाओ को ज्ञात कर लिया जाता है। 

नेटवर्क या जाल आरेखन( Network)

सबसे पहले इससे संबंधित शब्दावली की जानकारी होना आवश्यक है।जो निम्न है। 

(1) संक्रिया या एक्टिविटी(Activity)

किसी भी निर्देशित कार्य को करना क्रिया या संक्रिया कहलाता है।इसके लिए समय और संसाधन दोनो की आवश्यकता पड़ती है। संक्रिया के उदाहरण निम्नलिखित है।

जैसे - नींव खोदना ,कंक्रीट डालना , चिनाई करना आदि।

नेटवर्क का चित्रण करते समय संक्रिया को तीर से दिखाया जाता है।

तीर की पूछ संक्रिया का प्रारंभ तथा शीर्ष संक्रिया का समापन को दिखाता है।एक संक्रिया को दर्शाने के लिए एक ही तीर की आवश्यकता होती है।अलग अलग संक्रिया के लिए अलग अलग तीर बनाए जाते है।पहचान के लिए प्रत्येक संक्रिया को  अलग अलग  नाम दिया जाता ही अर्थात अलग अलग अक्षर से दिखाते है।किसी भी संक्रिया में जो समय लगता है।उसे तीर के नीचे लिखा जाता है।


(2) घटना या इवेंट(Event)  

जब कोई संक्रिया खत्म हो जाती है।तो एक कार्य पूरा हो जाता है।इस अवस्था को घटना कहते है।एक या एक से अधिक संक्रियाओ का समापन एक ही घटना में हो सकता है।
और इसी प्रकार एक घटना के पूरा हो जाने के बाद एक से अधिक संक्रिया शुरू हो सकती है। एक घटना से दूसरी घटना तक किसी संक्रिया से ही पहुंचा जा सकता है।
नेटवर्क तकनीक में घटना को वृत में दिखाया जाता है।गोले के अंदर घटना का अनुक्रम लिखा होता है।वृत को नोड भी कहते है।
(3) परिसीमाये( constraints)
परिसीमाये उन परिस्थितियों को कहते हैं,जो किसी संक्रिया को एक निर्धारित अनुक्रम अथवा समय पर ही करने के लिये बाध्य करती है।
जैसे जब तक नींव की खुदाई का कार्य पूरा नहीं हो जाता उसमे कंक्रीट नहीं डाली जा सकती है।
या जब तक चिनाई का कार्य पूरा नही हो जाता उसपर प्लास्टर नहीं किया जा सकता है।

(4) नेटवर्क या जाल आरेखन(Network or flow diagram)
ऐसा जाल आरेख जो एक प्रोजेक्ट के अन्दर आने वाले सभी संक्रियाओ   और सभी घटनाओं   केे परस्पर सम्बंध को  दिखाता हो उसे नेटवर्क कहते है।

नेटवर्क को बाई ओर से दाई ओर बढ़ता हुआ दिखाया जाता है।



(5) घटना का नामन(Identification of Activity and Event) 

 संक्रिया की इसके आरंभ तथा अंत की घटना की संख्या द्वारा पहचान की जाती है।इसे i-j प्रणाली  कहते है। इसे अंग्रेजी वर्णमाला A,B,C ...... से भी प्रदर्शित किया जाता है।

(6) मूक या डमी संक्रिया(Dummy Activity)  

ये एक कृत्रिम संक्रिया होती है।जिसे समय और संसाधन की आवश्यकता नहीं होती है।ये अन्य संक्रियाओ का लॉजिक बनाए रखने के लिए तथा निर्भरता दर्शाने के लिए अपना ली जाती है।दो या अधिक समान संख्या वाली संक्रियाओ में भेद रखने के लिए भी डमी संक्रिया का प्रयोग किया जाता है। 

इसे सामान्यत: खंडित रेखा से दर्शाते है। 

(7) अवधि(Duration) 

किसी भी संक्रिया को पूरा करने के लिए जो समय लगता है। उस अनुमानित समय को अवधि कहते है।ये घंटो, दिनों ,या महीनो में हो सकती है।

(8) नेटवर्क के प्रारूप(forms of network) 

नेटवर्क बनाने के प्रारूप निम्न है। 

(i) A-O-A प्रणाली (Activity on Arrow system) 

इस विधि मे संक्रिया को तीर पर दिखाया जाता है। तीर का पिछला सिरा संक्रिया का आरम्भ तथा अगला सिरा संक्रिया का समापन दिखाता है।घटना को गोले से शुरू और अंत में दिखाया जाता है।

(ii) A-O-N प्रणाली( Activity on Node System) 

इस विधि मे संक्रिया को गोले पर दिखाया जाता है।तीर केवल   संक्रियाओ की निर्भरता दर्शाने के लिए प्रयोग किया जाता है।

नोट ) A-O-N प्रणाली में डमी संक्रिया नहीं होती है। 

(9) क्रान्तिक संक्रिया(critical Activity)

जिस संक्रिया को निर्धारित समय के अन्दर अवश्य पूरा करना होता है।उसे क्रान्तिक संक्रिया कहते है।क्रान्तिक संक्रिया में देरी होने से परियोजना की समाप्ति में देरी हो सकती है।

(10) अक्रान्तिक या शिथिल संक्रिया(Non critical Activity) 

ऐसी संक्रिया जिसको निर्धारित समय अवधि के पहले या बाद में पूरा करने पर परियोजना की समाप्ति पर कोई असर नहीं होता है।उसे अक्रान्तिक संक्रिया कहते है 

(11) क्रान्तिक घटना(Critical Event)

वह घटना जिस पर निर्धारित अवधि में पहुंचना आवश्यक होता है।क्रान्तिक घटना कहलाती है।

(12) क्रान्तिक पथ(Critical Path)

क्रान्तिक घटनाओं को मिलाने से जो पथ निर्धारित होता है,उसे क्रान्तिक पथ कहते है।क्रान्तिक पथ पर पड़ने वाली सभी संक्रिया भी क्रान्तिक होती है।इस मार्ग पर चलते हुए कम से कम समय में कुल परियोजना को पूरा किया जा सकता है।नेटवर्क आरेखन में क्रान्तिक पथ को मोटी रेखा से दिखाया जाता है।

  

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