सर्वेक्षण में त्रुटि क्या है?
सर्वेक्षण में त्रुटियां कितने प्रकार की होती है?
सर्वेक्षण त्रुटि के स्रोत?
विधि के आधार पर सर्वेक्षण का वर्गीकरण
विधि के आधार पर सर्वेक्षण को दो भागों में बांटा गया है।
त्रिकोणन सर्वेक्षण (Triangulation survey)
इसमें पूरे क्षेत्र में जहां सर्वेक्षण करना होता है। त्रिकोणो की सहायता से नियन्त्रण बिंदू स्थापित किए जाते है।इसके बाद सर्वेक्षण का कार्य किया जाता है।इस प्रकार सर्वेक्षण का मान में त्रुटि की संभावना कम होती है।
चंक्रम सर्वेक्षण (Traversing Survey)
इस प्रकार के सर्वेक्षण में नियन्त्रण बिन्दुओ को रेखीय व कोणीय मापो के द्वारा स्थापित किए जातेे हैं
सर्वेक्षण कार्य में त्रुटियां (Errors in surveying).
(1) प्राकृतिक त्रुटि
(2) उपकरण त्रुटि
(3) व्यक्तिगत त्रुटि
(1) प्राकृतिक त्रुटि (Natural error)
सर्वेक्षण कार्य में जो त्रुटि प्राकृतिक कारणों से आती है।उसे प्राकृतिक त्रुटि कहा जाता है। जब मौसम खराब होता है।तो सर्वेक्षण कार्य में दिक्कत आती है।और उसमे त्रुटि की संभावना बढ़ जाती है। खराब मौसम में आंधी, ताप, वर्षा, तेज़ धूप, आर्द्रता, अपवर्तन, चुंबकीय दिकपात आदि आता है।
चुंकि खराब मौसम में सर्वे के कार्य में त्रुटि की संभावना अधिक होती है।इसी कारण खराब मौसम में सर्वेक्षण कार्य बंद कर देना चाहिए।
(2) उपकरण त्रुटि ( Instrumental error)
जो त्रुटि उपकरण के कारण होती है।उसे उपकरण त्रुटि कहा जाता है।ऐसी त्रुटि खराब उपकरण के कारण आती है। इसी कारण उपकरण को प्रयोग करने से पहले उसकी अच्छी प्रकार से जांच कर लेनी चाहिए।और किसी भी हाल में दोषपूर्ण उपकरण का प्रयोग कभी भी नहीं करना चाहिए।
(3) व्यक्तिगत त्रुटि (Personal error)
व्यक्तिगत त्रुटि व्यक्ति की लापरवाही से ,भूल से या सर्वेक्षक स्वास्थ्य खराब होने के कारण आती है। कमजोर दृष्टि वाले व्यक्ति द्वारा सर्वे का कार्य करने से या जल्दबाजी में कार्य करने से ऐसी त्रुटि आती है।या ऐसे व्यक्ति द्वारा सर्वे कार्य करने पर जिसे सर्वेक्षण का ज्ञान न हो या जो संकेतो और भाषा को ठीक से न समझता हो उसके द्वारा भी इस प्रकार की त्रुटि होती है।
त्रुटियों का वर्गीकरण (Classification of error)
त्रुटियों को निम्न दो वर्गों में बांटा गया है।
(1) संचयी त्रुटि
(2) प्रतिकारी त्रुटि
(1) संचयी त्रुटि (Cumulative error)
जब त्रुटि एक ही दिशा में बढ़ती है।और कार्य के साथ साथ संचित होती रहती है। अर्थात कार्य की समाप्ति पर वास्तविक माप को या तो बढ़ा देती है या घटा देती है। तो इस प्रकार की त्रुटि को संचयी त्रुटि कहते हैं।
जब हमे माप वास्तविक माप से अधिक मिले अर्थात त्रुटि किसी माप को बढ़ा दे तो ऐसी त्रुटि को धनात्मक त्रुटि कहते है।
और जब वास्तविक माप से कम माप मिले तो उसे ऋणात्मक त्रुटि कहते है।
शुद्ध माप प्राप्त करने के लिए धनात्मक त्रुटि को घटाना पड़ता है।
और ऋणात्मक त्रुटि को घटाना पड़ता है।
(2) प्रतिकारी त्रुटि (Compensating error)
ऐसी त्रुटि जो माप को कभी बढ़ा दे और कभी घटा दे अर्थात कभी एक दिशा में माप को बढ़ाए और दूसरी दिशा में माप को घटाए तो ऐसी त्रुटि को प्रतिकारी त्रुटि कहते है।इस प्रकार की त्रुटि एक दूसरे को स्वयंम ही काटती रहती है। और अंत में इसका प्रभाव नगण्य हो जाता है।
दूरी नापने की विधियां Methods of linear distance Measurements)
दूरी नापने की निम्न दो विधि होती है।
(1) प्रत्यक्ष विधि
(2) अ-प्रत्यक्ष विधि
प्रत्यक्ष विधि (Direct method)
ये विधि सामान्य कार्यों में दूरी नापने के लिए अपनाई जाती है।इसमें निम्न विधियां होती है।
(1) कदम गिन कर (Pacing)
इस विधि मे कदम की सहायता से दूरी निकलते है।इसके लिए दो बिंदुओ की बीच सामान्य चाल से चलते है और कदम को गिनते जाते है।इस बाद कुल कदम की संख्या में एक कदम की औसत लंबाई से गुना करके ,कुल दूरी निकाल लेते है।
एक सामान्य मनुष्य के एक कदम की औसत दूरी 75 से 80 सेमी ली जाती है।
(2) कदम मापी द्वारा (By Passometer)
इस में पॉकेट वॉच के तरह एक यंत्र होता हैं।को कदमों की संख्या बताता है।इसे सर्वेक्षक अपने पैरो में बांध लेता है।और जब सर्वेक्षक एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक चलता है तो ये यंत्र उसके कदमों की संख्या बता देता है।जिसे बाद में औसत लंबाई से गुना करके कुल दूरी निकाल लिया जाता है।
(3) परिभ्रमक द्वारा (By Perambulator)
ये एक पहिए वाला यंत्र होता है।जिसके चिमटे पर एक घड़ी लगी होती है।उसे हाथो से पकड़ कर चलाया जाता है।जिन दो बिन्दुओ के बीच की दूरी ज्ञात करनी होती है। उन बिन्दुओ के बीच इसे चलाया जाता है। पहिया जो दूरी तय करता है।वो सीधे गेज पर आ जाती है।
(4) पैडोमीटर द्वारा (By Pedometer)
ये कदम मापी से ही मिलता जुलता यंत्र होता हैं। परन्तु इस यंत्र दूरी सीधे मीटर में मिल जाती है।
(5) चक्कर मापी द्वारा (Odometer)
ये ऐसा यंत्र होता है जिसे वाहन के पहिए से बांध दिया जाता है।जैसे जैसे पहिया घूमता है।ये घूमे हुए चक्कर की गिनती करता है।और उसे पहिए की परिधि से गुना करके कुल दूरी निकाल देता है।
(6) गतिमापक द्वारा (Speedometer)
ये यंत्र ऑटो वाहन में लगा रहता है और पहिये के घूमने पर ,घूमे चक्रों की गिनती करता है।जिसे पहिए की परिधि से गुना करके दूरी निकाल ली जाती है।
(7) जरीब व फीते द्वारा (Chain and Tape)
दूरी को शुद्धता से नापने के लिए सर्वेक्षण के कार्यों में जरीब व फीते का प्रयोग किया जाता है ।इससे दूरी अधिक परिशुद्धता से ज्ञात होती है और संतोष जनक रहती है। परन्तु जरीब द्वारा छोटी दूरी ही नापी जा सकती है। ज्यादा बड़ी दूरी जरीब द्वारा नापने पर त्रुटि की सम्भावना अधिक हो जाती है।
अ-प्रत्यक्ष विधि (Indirect Method)
इसमें दो विधियां आती है।
(1) प्रकाशीय यंत्र विधि द्वारा
(2) विद्युत चुम्बकीय द्वारा
(1) प्रकाशीय यंत्र विधि द्वारा
इस विधि मे थियोडोलाइट का प्रयोग किया जाता है।थियोडोलाइट के बिम्ब पट पर स्टेडिया रेखाये बनी होती है।जिनकी सहायता से दो स्टेशनों के मध्य की दूरी बिना जमीन को मापे ज्ञात किया जा सकता है।
(2) विद्युत चुम्बकीय द्वारा
इसमें विद्युत प्रकाशिय उपकरण में प्रकाश की किरणों के द्वारा दूरी मापी जाती है।
कोणीय मापन की विधियां( Methods of Angular Measurements)
दो बिन्दुओ की सापेक्ष स्थिति ज्ञात करने के लिए रेखीय मापन के साथ कोणीय मापन भी किया जाता है।इसके निम्न उपकरणों का प्रयोग करते है।
i) दिकसूचक(compass) इसके मदद से हम दिशाओं के कोणीय माप लेते है इसमें चुम्बकीय घड़ी या कुतुबनुमा का प्रयोग किया जाता है।
ii) बॉक्स सेक्सटैंट और थियोडोलाइट(theodolite) इसकी मदद से दो रेखाओं के बीच क्षैतिज व ऊर्ध्व कोण मापे जाते है।
Theodolite
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सर्वेक्षण - का उद्देश्य ...................
जरीब सर्वे chain surveying .........
29/06/2021
ReplyDeleteNidhi singh
DeletePresent
Present sir
DeleteSandeep kumar 1st
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ReplyDeleteSangharsh gupta
ReplyDeleteP sir
Sanjeev Kumar
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Arpita Sharma
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P
ReplyDeleteRitesh
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Balram Jaiswal
ReplyDeleteP sir
P sir
ReplyDeleteArpita Sharma
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Pawan kumar gupta
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ReplyDeletePooja Yadav
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Gyanendra pratap singh
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ReplyDeleteP sir
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ReplyDeleteGeetesh Kumar
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Santosh Gupta
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