Skip to main content

technology Part 1 कंक्रीट टेक्नोलॉजी

 Concrete कंक्रीट

कंक्रीट एक मिश्रण है जो बंधक पदार्थ, मोटा मिलावा, महीन मिलावा और जल के मिश्रण को उचित अनुपात में मिलाकर बनाया  जाता है।

कंक्रीट= बंधक पदार्थ + मोटा मिलाव+ महीन मिलावा+ जल 



कंक्रीट के प्रकार 

बंधक पदार्थ के आधार पर कंक्रीट निम्न प्रकार की होती है।

1- गारा कंक्रीट 

2- चुना कंक्रीट 

3- सीमेंट कंक्रीट 

1- गारा कंक्रीट  

गारा कंक्रीट बनाने के लिए मिट्टी गारे में ईंट की रोड़ी मिलाकर तैयार किया जाता है। गारे में मिट्टी और बालू को अच्छी तरह मिलाकर मिश्रण बनाते है , उसके बाद इसमें ईंट की रोड़ी मिलाकर कंक्रीट बनाते है। ईंट की रोड़ी की माप 40 mm तक रखा जाता है। 

अनुपात 

इसमें एक भाग मृदा और 2.5 भाग ईंट की रोड़ी रखते है।

इसे 15 cm मोटी परतो में डाली जाती है।और इसकी कुटाई दुरमठ के द्वारा की जाती है। 

गारा कंक्रीट का उपयोग 

इसकी सामर्थ्य बहुत कम होती है। इसी कारण इसे निम्न श्रेणी के कंक्रीट में रखा गया है। इसका उपयोग अस्थाई निर्माण कार्यो और सस्ते मकानों में नींव और फर्श बनाने में किया जाता है। ऐसे स्थानों पर जहां पर वर्षा अधिक होती है। वहां इस कंक्रीट का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। 

चुना कंक्रीट 

जब कंक्रीट में बंधक पदार्थ के रूप में चुना का प्रयोग किया जाता है। 

 चुना कंक्रीट काम सामर्थ वाली  कंक्रीट है इसी कारण इसका प्रयोग दीवारों की नींव , फर्श के आधार पर तथा चपटी छतो पर सीलन रोधक, व ताप सह स्तर के रूप में किया जाता है। 

चुना कंक्रीट बनाने के लिए  चुना , मोटा मिलाव, महीन मिलाव और जल का प्रयोग किया जाता है। महीन मिलावे के रूप में सुर्खी , बालू , या राखी का प्रयोग किया जा सकता है। मोटे मिलवा के रूप में ईंट की रोड़ी का प्रयोग किया जाता है। 

स्थूल कंक्रीट के लिए 40 mm माप की कंक्रीट तथा फर्श के लिए 20 mm माप की रोड़ी का प्रयोग किया जाता है। 

सीमेंट कंक्रीट  

संघटक 

सीमेंट , मोटा मिलाव, महीन मिलाव और जल 

सीमेंट एक बंधक पदार्थ है। साधारण कार्यों में साधारण पोर्टलैंड सीमेंट का प्रयोग किया जाता है। सीमेंट में पानी मिलने के बाद आधे घंटे के अंदर कुटाई पूर्ण कर लेनी चाहिए। क्योंकि आधे घंटे के बाद सीमेंट जमना शुरू हो जाता है। 

बालू 

 महीन मिलावे के रूप में बालू का प्रयोग किया जाता है। बालू गिट्टी के बीच के खाली स्थानों को भरता है। जिससे कंक्रीट सघन बनता है।  बालू सूखी नदियों की तली से अथवा गड्ढे से खोद कर निकाल जाता है। 

गिट्टी 

गिट्टी के रूप में पत्थर की गिट्टी का प्रयोग किया जाता है। पत्थर की गिट्टी , ठोस, भारी, खुरदुरी सतह वाली व धनाकार होनी चाहिए। सामान्य कंक्रीट कार्यों के लिए 40mm व 20 mm माप की गिट्टी अधिक प्रयोग किया जाता है। 

जल 

सीमेंट में पानी मिलाने पर रासायनिक क्रिया होती है।जिसे जलयोजन क्रिया कहते है।इस क्रिया में सीमेंट के कण जेल के रूप में बदल जाते है।और महीन और मोटे मिलावे को ढाप लेता है।और सूखने पर ठोस पिण्ड के रूप में परिवर्तित हो जाता है। 

कंक्रीट के गुण 

  1. कंक्रीट में प्रयोग किए जाने वाले संघटक आसानी से प्रत्येक स्थान पर मिल जाते है। 
  2. कंक्रीट का उत्पादन सरल पड़ता है।इसको बनाने में कम समय लगता है।
  3. कंक्रीट को किसी भी आकार में आसानी में ढाला जा सकता है।
  4. कंक्रीट की सामर्थ्य ईंट और लकड़ी की तुलना में अधिक होती होती है।
  5. कंक्रीट के उपर मौसम का प्रभाव कम पड़ता है। 
  6. कंक्रीट के उपर कीटो और दीमक का कोई प्रभाव नही पड़ता है।
  7. इसकी देख भाल करना आसान होता है। 
  8. कंक्रीट की आयु  अन्य पदार्थों की तुलना में अधिक होती है। 
  9. जैसे जैसे समय बढ़ता है कंक्रीट की सामर्थ्य  भी  बढ़ती जाती है।  
  10. कंक्रीट के द्वारा विशाल संरचना बनाई जाती है। 

दोष 

  1. कंक्रीट को एक बार ढालने के बाद उसके आकार में परिवर्तन करना कठिन होता है। 
  2. कंक्रीट की तनन सामर्थ्य बहुत कम होती है। जिसके कारण इसमें स्टील डालना पड़ता है। 
  3. ताप के कारण कंक्रीट में परिवर्तन होता है।जिसके कारण इसमें प्रसार जोड़ डालना पड़ता है। 
  4. गीली कंक्रीट सूखने पर संकुचन होता है।जिसके कारण इसमें आंतरिक प्रतिबल उत्पन्न हो जाते है। 
  5. कंक्रीट का स्वयम का भार बहुत अधिक होता है। 
  6. कंक्रीट को ढालने के फर्माबंदी की आवश्कता होती है। जो इसकी लागत बढ़ा देता है। 
  7. कंक्रीट का कबाड़ी मूल्य शून्य होता है।


कंक्रीट के भौतिक गुण  

1- सामर्थ्य 

2- टिकाऊपन 

3- सुकार्यता 

4- सघनता 

1- सामर्थ्य  

कंक्रीट की सम्पीडन सामर्थ्य बहुत अधिक होती है । कंक्रीट की तनन सामर्थ्य सम्पीडन सामर्थ्य की तुलना 10% तक ही होती है। इसी कारण कंक्रीट सम्पीडन सामर्थ्य पर ही विचार किया जाता है। इसी कारण सादा कंक्रीट का प्रयोग केवल उन्हीं संरचनाओं में किया जाता है। जहां सम्पीडन सामर्थ्य  अधिक होती है। 

2- टिकाऊपन 

कंक्रीट में अच्छे गुणों के सीमेंट का प्रयोग और अच्छे मिलावे का प्रयोग करके कंक्रीट की आयु बढ़ाई जा सकती है जिससे उसका टिकाऊपन अधिक हो जाता है। 

3- सुकार्यता  

सुकार्यता का अर्थ है की कंक्रीट पर अच्छे से काम किया जा सके अर्थात कंक्रीट को बिछाना , फैलाना, कुटाई करना आदि।

कंक्रीट की सुकार्यता इसमें मिलाए जाने वाले पानी पर निर्भर करती हैं।कंक्रीट में जितना अधिक पानी होगा , उतना ही वो अधिक सुघटय होगी और उसकी सुकर्यता उतनी ही अच्छी होगी । परन्त  बहुत अधिक पानी मिलाने से कंक्रीट की सामर्थ्य काम हो जाती है। 

4- सघनता 

कंक्रीट के गाढ़ापन  को कंक्रीट की सघनता कहते है।कंक्रीट में जितना अधिक पानी होगा उसकी सघनता उतनी कम होगी। 

कंक्रीट की सघनता और सुकार्यता ज्ञात करने के लिए अवपात परीक्षण किया जाता है। 

कंक्रीट के प्रकार  

  1. सादा कंक्रीट 
  2. अल्प सीमेंट कंक्रीट 
  3. सघन कंक्रीट 
  4. स्थूल कंक्रीट 
  5. कच्ची कंक्रीट 
  6. कठोरकृत कंक्रीट 
  7. अवपात शून्य कंक्रीट 
  8. सामान्य भार वाली कंक्रीट 
  9. उच्च भार वाली कंक्रीट 
  10. प्रबलित कंक्रीट 
  11. पूर्व प्रबलित कंक्रीट 
  12. तैयार कंक्रीट 
सादा कंक्रीट 

सदा कंक्रीट वो कंक्रीट होता है जिसमे प्रबलन का इस्तेमाल न किया गया हो  ऐसी कंक्रीट में केवल संपीडन सामर्थ्य को सहन करने की क्षमता होती है।  
अल्प सीमेंट कंक्रीट 
ऐसी कंक्रीट में प्रति धन मीटर में सीमेंट की मात्रा कम डाली जाती है। इस प्रकार की कंक्रीट की सामर्थ्य सामान्य कंक्रीट की सामर्थ्य से कम होती है। इस प्रकार की कंक्रीट का प्रयोग नीव के नीचे और फर्श के आधार कोट के रूप में किया जाता है। 

सघन कंक्रीट 
ऐसी कंक्रीट का प्रयोग ऐसी जगह करते है। जहा पर जलरोधी सतह बनानी होती है।इस प्रकार की कंक्रीट में रिक्तियों को संख्या न्यूनतम होती है। 

स्थूल कंक्रीट 
जब किसी बड़े कार्य पर बड़ी मात्रा में कंक्रीट डालनी हो तो उसे स्थूल कंक्रीट कहते है। 

कच्ची कंक्रीट 
ऐसी कंक्रीट जो कार्य स्थल पर सेट हो गई हो परन्त
 उसमे अभी सामर्थ्य न उत्पन्न हुई हो उसे कच्ची कंक्रीट या हरी कंक्रीट कहते है। 
कठोरकृत कंक्रीट 
जब कंक्रीट कठोर जम कर पूरी तरह कठोर हो जाती है। तो इसे कठोर कंक्रीट कहते है इसमें लगभग 10 घंटे का समय लगता है। 

अवपात शून्य कंक्रीट 
इस प्रकार की  कंक्रीट में अवपात शून्य होता है, ये उच्च सामर्थ्य वाली कंक्रीट होती है। 

सामान्य भार वाली कंक्रीट 
जब कंक्रीट का भार 2400 kg/ cum होता है तो ऐसी कंक्रीट को सामान्य भार वाली कंक्रीट  कहते है। 


उच्च भार वाली कंक्रीट  
ये उच्च धनत्व वाली कंक्रीट होती है ।इसका भार 3400- 4000 kg/ cum तक होता है। 

प्रबलित कंक्रीट 
 इस कंक्रीट की तनन सामर्थ्य को बढ़ाने के लिए इसके अंदर स्टील की छड़े डाली जाती है।  

पूर्व प्रबलित कंक्रीट  
इस प्रकार की कंक्रीट बनाने के लिए इसमें इस्पात की छड़ों के स्थान पर उच्च तनन सामर्थ्य वाली तारे डाली जाती है और उनको यांत्रिक व्यवस्था से खीच कर आंतरिक तनन प्रतिबल उत्पन्न किए जाते है।


Comments

Popular posts from this blog

Jarib , pictures, photo,जरीब का चित्र, chain survey,Part3 जरीब सर्वेक्षण chain survey

  जरीब सर्वेक्षण के कितने सिद्धांत है? जरीब अथवा फीता क्या है? जरीब कितने प्रकार के होते हैं? जरीब ( Chain)।  जरीब का चित्र।  जरीब एक प्रकार का यंत्र जो रेखीय दूरी नापने के काम आती है।ये जस्तीकृत मृदु इस्पात के तार से कड़ियो को जोड़़ कर बनाई जाती है।जरीब को जरीब के चित्र द्वारा अच्छे से समझा जा सकता है। इसमें कड़ी के सिरो पर घुण्डी बनाकर  तथा तीन छोटे छल्लो द्वारा कड़ियो को आपस में जोड़ कर वांछित लम्बाई की जरीब बनाई जाती है। जरीब के दोनो सिरो पर एक पीतल का हत्था लगा होता है। जिसकी मदद से जरीब को फैलाया जाता है।   जरीब सर्वेक्षण ऐसी जगह पर किया जाता है।जहा सर्वेक्षण क्षेत्र छोटा हो।या सामान्य कार्यों के लिए और क्षेत्र की सीमाएं निर्धारित करने के लिए ,सर्वेक्षण नक्शा बनाने के लिए जरीब सर्वेक्षण संतोषजनक रहता है। जरीब सर्वेक्षण केवल रेखीय माप के लिए किया जाता है।जरीब  सर्वेक्षण में रेखाओ का कोणीय मान नहीं निकला जाता है। निम्नलिखित स्थिति यो मे जरीब सर्वेक्षण अपनाना सही रहता है।  (i ) जब सर्वेक्षण क्षेत्र छोटा ,सीमित ,और खुला तथा लगभग समतल हो  (ii) जब...

Part4जरीब सर्वेक्षण( उपकरण)

  खसका दंड।खसका दंड का प्रयोग  ये भी आरेखन दण्ड की तरह ही होता है। परन्तु इसके ऊपरी सिरे पर जरीब की हैंडल फसाने के लिए एक खांचा बना रहता है।जिसकी सहायता से खाई या झाड़ियों वाली स्थान में  जरीब के द्वारा नाप ली जाती है। खूँटी।  खूँटी का कार्य  खूँटी को सर्वेक्षण स्टेशनो की पहचान करने के लिए उस बिंदु पर गाड़ दी जाती है।ये लकड़ी  की बनी होती है। उसके ऊपर स्टेशन का नाम लिख दिया जाता है। उसकी लम्बाई 15 cm से 20 cm तक होती है। इसका शीर्ष 5cmx5cm वर्गाकार होता है।  साहुल।साहुल का कार्य  साहुल के द्वारा कम्पास , लेवल, थियोडोलाइट, आदि उपकरण को स्टेशन बिंदु पर केन्द्रण करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त ढालू जमीन पर जरीब मापन करते समय तथा आरेखन दण्ड को ठीक ऊर्ध्वाधर खड़ा करने में साहुल द्वारा जांच की जाती है। ये धातु का शंकुनुमा पिण्ड होता है।जिसके शीर्ष में एक मजबूत डोरी बंधी होती हैं। झाडियाँ । झाडियाँ का कार्य आरेखन दण्डो दूर से पहचान करने के लिये,इनके शीर्ष पर कपड़े की चौकोर  लाल या सफेद रंग की झाडियाँ बांध दी जाती है।   समकोण...

what is surveying in civil engineering,Surveying ,सर्वेक्षण Part 1

  what is surveying in civil engineering सर्वेक्षण  (Survey) Surveying is the art to determing the relative position of a points and the distance and angles between them.   सर्वेक्षण सिविल इंजीनियरिंग की वो शाखा है।जिसके अन्तर्गत किसी एक बिंदू के सापेक्ष किसी दूसरे बिंदू की भूतल पर या भूगर्भ या आकाश में ऊंचाई या गहराई का पता लगाया जाता है। उसे ही सर्वेक्षण कहा जाता है। सर्वेक्षण सिविल इंजीनियरिंग का अत्यंत महत्वपूर्ण भाग है। इसकी सहायता से ही किसी क्षेत्र के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।तथा निर्माण संबंधी ड्राइंग बनाकर निर्माण कराया जाता हैं।  सर्वेक्षण का उद्देश्य ( purpose of survey) सर्वेक्षण के निम्न उद्देश्य है। 1 सर्वेक्षण क्षेत्र का नक्शा या मानचित्र बनाना, क्षेत्र से प्राप्त मापो को ड्रॉइंग सीट पर आलेखित करना। 2 विभिन्न निर्माण कार्यों के लिए स्थल का चयन करना जैसे , रेल , सड़क, पाइप लाइन ,सीवर लाइन आदि। 3 सतह पर किसी बिंदू की स्थिति ज्ञात करना। 4 विभिन्न प्राकृतिक और कृत्रिम बिंदुओ की ऊंचाई और गहराई का पता लगाना। 5 विभिन्न निर्माण कार्यों के लि...