Skip to main content

भारत का मध्य कालीन इतिहास भाग 3 ( Meduval history)

 तुगलक वंश 

ग्यासुद्दीन तुगलक 




तुगलक गाजी 8 सितम्बर, 1320ई को ग्यासुद्दीन तुगलक के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा।

उसका वास्तविक नाम गाजी मालिक था। ये तुगलक वंश का संस्थापक था। 

इसके शासन काल में मंगोलों ने अनेक  बार आक्रमण परन्तु ग्यासुद्दीन तुगलक ने हर बार उन्हे पराजित किया जिसके कारण

वो मलिक उल गाजी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उसने अपनी राजधानी तुगलकाबाद शहर को अपनी राजधानी बनाया। 

ग्यासुद्दीन तुगलक एक योग्य शासक था , उसके अनुसार राजकीय आय में वृद्धि करने के लिए भू राजस्व में वृद्धि की अपेक्षा उत्पादन में वृद्धि की जानी चाहिए।

इसके लिए उसने अनेक कार्य किए ।उसके लिए उसने नहरों का निर्माण कराया। 

नहर के निर्माण करने वाला वो पहला शासक था।

ग्यासुद्दीन तुगलक  बहुत ही विद्वान व्यक्ति था।अमीर खुसरो के अनुसार सैकड़ो पंडितो की पगड़ी अपनी मुकुट के पीछे छुपाय रहता था। अर्थात वो बहुत ही विद्वान व्यक्ति था। 

ग्यासुद्दीन तुगलक  के कार्य 

1- इसने सिंचाई के लिए कुएँ और नहरों का निर्माण कराया।

2- उसने दिल्ली के समीप स्थित पहाड़ियों पर तुगलकाबाद नाम का एक नया नगर बसाया। 

ग्यासुद्दीन तुगलक  की मृत्यु बंगाल अभियान से लौटते समय जूना खान द्वारा निर्मित लकड़ी के महल में दबकर हो गई। 

मुहम्मद बिन तुगलक 



मुहम्मद बिन तुगलक 1325 ई में० ग्यासुद्दीन तुगलक  की मौत के बाद दिल्ली की गद्दी पर बैठा।

उसका वास्तविक नाम जूना खां था।

मुहम्मद बिन तुगलक एक विद्वान व्यक्ति था, मध्यकालीन  के सभी सुल्तानो वो सबसे ज़्यादा शिक्षित और योग्य व्यक्ति था। 

परन्तु अपनी सनक भरी योजनाओं के कारण स्वप्नशील , पागल और रक्तपिपासु कहा जाता है। 

मुहम्मद बिन तुगलक के कार्य 

मुहम्मद बिन तुगलक ने कृषि के विकास के लिए अमीर - ए- कोही नामक एक नया विभाग स्थापित किया।

मुहम्मद बिन तुगलक ने अपनी राजधानी दिल्ली से देवागिरी में स्थानांतरित की और उसका नाम दौलताबाद रखा।

मुहम्मद बिन तुगलक ने कांसा और तांबा के सिक्के चलवाए, जिनका मूल्य चांदी के टंका के बराबर होता था।

 

अफ्रीकी यात्री इब्न बतूता 1333ई में भारत आया जिसे सुल्तान ने दिल्ली का काज़ी बनाया। बाद में इसे अपने राजदूत के रूप में चीन भेजा।

इब्न बतूता की लिखी हुई पुस्तक रेहला में मुहम्मद बिन तुगलक के समय की घटनाओं का वर्णन मिलता है।

मुहम्मद बिन तुगलक ने जिन प्रभु सुरी नामक जैन साधू को अपने दरबार में बुलाकर सम्मान प्रदान किया। 

मुहम्मद बिन तुगलक के शासन काल में दाक्षिण में हरिहर और बुक्का नामक दो भाइयों ने 1336ई में स्वतंत्र राज्य विजयनगर की स्थापना की। 

मुहम्मद बिन तुगलक की योजनाएं 

दोआब में कर वृद्धि 

अपनी प्रथम योजना के द्वारा मुहम्मद तुग़लक़ ने दोआब के ऊपजाऊ प्रदेश में कर में लगभग 50% की वृद्धि कर दी ,परन्तु उसी वर्ष दोआब में भयंकर अकाल पड़ गया, जिससे पैदावार प्रभावित हुई। तुग़लक़ के अधिकारियों द्वारा ज़बरन कर वसूलने से उस क्षेत्र में विद्रोह हो गया, जिससे तुग़लक़ की यह योजना असफल रही। मुहम्मद तुग़लक़ ने कृषि के विकास के लिए भी अच्छे कार्य किए उसके कृषि को बढ़ावा देने के लिए  ‘दिवान-ए- अमीर कोही’ नामक एक नवीन विभाग की स्थापना की। सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार, किसानों की उदासीनता, भूमि का अच्छा न होना इत्यादि कारणों से कृषि उन्नति सम्बन्धी अपनी योजना को तीन वर्ष पश्चात् समाप्त कर दिया। मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने किसानों को बहुत कम ब्याज पर ऋण (सोनथर) उपलब्ध कराया।

राजधानी परिवर्तन 

तुग़लक़ ने अपनी दूसरी योजना के अन्तर्गत राजधानी को दिल्ली से देवगिरि स्थानान्तरित किया। देवगिरि को “कुव्वतुल इस्लाम” भी कहा गया। सुल्तान कुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी ने देवगिरि का नाम 'कुतुबाबाद' रखा था और मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने इसका नाम बदलकर दौलताबाद कर दिया। सुल्तान की इस योजना के लिए सर्वाधिक आलोचना की गई। मुहम्मद तुग़लक़ द्वारा राजधानी परिवर्तन के कारणों पर इतिहासकारों में बड़ा विवाद है, फिर भी निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि, देवगिरि का दिल्ली सल्तनत के मध्य स्थित होना, मंगोल आक्रमणकारियों के भय से सुरक्षित रहना, दक्षिण-भारत की सम्पन्नता की ओर खिंचाव आदि ऐसे कारण थे, जिनके कारण सुल्तान ने राजधानी परिवर्तित करने की बात सोची। मुहम्मद तुग़लक़ की यह योजना भी पूर्णतः असफल रही और उसने 1335 ई. में दौलताबाद से लोगों को दिल्ली वापस आने की अनुमति दे दी। राजधानी परिवर्तन के परिणामस्वरूप दक्षिण में मुस्लिम संस्कृति का विकास हुआ, जिसने अंततः बहमनी साम्राज्य के उदय का मार्ग खोला।

सांकेतिक व प्रतीकात्मक सिक्कों का प्रचलन 

तीसरी योजना के अन्तर्गत मुहम्मद तुग़लक़ ने सांकेतिक व प्रतीकात्मक सिक्कों का प्रचलन करवाया। सिक्के संबंधी विविध प्रयोगों के कारण ही एडवर्ड टामस ने उसे ‘धनवानों का राजकुमार’ कहा है। मुहम्मद तुग़लक़ ने 'दोकानी' नामक सिक्के का प्रचलन करवाया। बरनी के अनुसार सम्भवतः सुल्तान ने राजकोष की रिक्तता के कारण एवं अपनी साम्राज्य विस्तार की नीति को सफल बनाने हेतु सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन करवाया। सांकेतिक मुद्रा के अन्तर्गत सुल्तान ने संभवतः पीतल (फ़रिश्ता के अनुसार) और तांबा (बरनी के अनुसार) धातुओं के सिक्के चलाये, जिसका मूल्य चांदी के रुपये टका के बराबर होता था। सिक्का ढालने पर राज्य का नियंत्रण नहीं रहने से अनेक जाली टकसाल बन गये। लगान जाली सिक्के से दिया जाने लगा, जिससे अर्थव्यवसथा ठप्प हो गई। सांकेतिक मुद्रा चलाने की प्रेरणा चीन तथा ईरान से मिली। वहाँ के शासकों ने इन योजनाओं को सफलतापूर्वक चलाया, जबकि मुहम्मद तुग़लक़ का प्रयोग विफल रहा। सुल्तान को अपनी इस योजना की असफलता पर भयानक आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ा।ऐसा नहीं था कि तुगलक ने सांकेतिक मुद्रा चलाने से पहले जांच पड़ताल न की हो ,इन से पहले 12वी शताब्दी में चीन के शासक कुबलई खाँ ने कागज की मुद्राएं चलायी थी,और उनका प्रयोग सफल भी हुआ था । और इसी क्रम में फारस के शासक गाईखात्तु खाँ ने चमड़े का सिक्का चलाया था ,जिसमे कुबलई खाँ का का प्रयोग सफल हुआ और फारस के शासक का असफल । अतः चीनी शासक कुबलई खाँ के प्रयोग से सीखकर उसने ऐसा किया लेकिन वह भी असफल रहा।

फिरोज तुगलक 



मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु के बाद फिरोज तुगलक शासक बना ।उसका राज्यभिषेक  20 मार्च 1351 को थट्टा के पास हुआ था। उसका राज्याभिषेक दो बार हुआ दूसरा दिल्ली में फिर से राज्याभिषेक हुआ।

खलीफा द्वारा उसे कासिम अमीर उल मोममीन कहा गया।

फिरोज तुगलक एक नम्र दिल शासक था, उसने अपने शासन काल में 24 कष्ट दायक करो को समाप्त कर केवल चार कर लगाए। 

फिरोज तुगलक ब्राह्मणो पर जजिया कर लगाने वाला पहला मुस्लिम शासक था। 

फिरोज तुगलक ने एक नया कर सिंचाई कर भी लगाया, जो उपज का 1/10 भाग था।

फिरोज तुगलक ने नहरों का निर्माण कराया उसने 5 बड़ी नहरों का निर्माण कराया। 

उसने लगभग 300 नए नगर बसाए जिसमे से हिसार, फिरोजाबाद( दिल्ली), फतेहाबाद, जौनपुर , फिरोजपुर , प्रमुख है।

इसी के शासन काल में खिज्राबाद ( टोपरा गांव) और मेरठ से अशोक के दो स्थम्भो को लाकर दिल्ली में स्थापित किया गया। 

उसने दीवान ए खैरात  की स्थापना की जिससे अनाथ मुस्लिम महिलाओं , विधवाओं और लड़कियों की सहायता की जाती थी।

फिरोज तुगलक के शासन काल में   दासों की संख्या सबसे अधिक थी। 

दासों के देख भाल के लिए एक नए विभाग दीवान ए बंदगान की स्थापना की।

Comments

Popular posts from this blog

Jarib , pictures, photo,जरीब का चित्र, chain survey,Part3 जरीब सर्वेक्षण chain survey

  जरीब सर्वेक्षण के कितने सिद्धांत है? जरीब अथवा फीता क्या है? जरीब कितने प्रकार के होते हैं? जरीब ( Chain)।  जरीब का चित्र।  जरीब एक प्रकार का यंत्र जो रेखीय दूरी नापने के काम आती है।ये जस्तीकृत मृदु इस्पात के तार से कड़ियो को जोड़़ कर बनाई जाती है।जरीब को जरीब के चित्र द्वारा अच्छे से समझा जा सकता है। इसमें कड़ी के सिरो पर घुण्डी बनाकर  तथा तीन छोटे छल्लो द्वारा कड़ियो को आपस में जोड़ कर वांछित लम्बाई की जरीब बनाई जाती है। जरीब के दोनो सिरो पर एक पीतल का हत्था लगा होता है। जिसकी मदद से जरीब को फैलाया जाता है।   जरीब सर्वेक्षण ऐसी जगह पर किया जाता है।जहा सर्वेक्षण क्षेत्र छोटा हो।या सामान्य कार्यों के लिए और क्षेत्र की सीमाएं निर्धारित करने के लिए ,सर्वेक्षण नक्शा बनाने के लिए जरीब सर्वेक्षण संतोषजनक रहता है। जरीब सर्वेक्षण केवल रेखीय माप के लिए किया जाता है।जरीब  सर्वेक्षण में रेखाओ का कोणीय मान नहीं निकला जाता है। निम्नलिखित स्थिति यो मे जरीब सर्वेक्षण अपनाना सही रहता है।  (i ) जब सर्वेक्षण क्षेत्र छोटा ,सीमित ,और खुला तथा लगभग समतल हो  (ii) जब...

Part4जरीब सर्वेक्षण( उपकरण)

  खसका दंड।खसका दंड का प्रयोग  ये भी आरेखन दण्ड की तरह ही होता है। परन्तु इसके ऊपरी सिरे पर जरीब की हैंडल फसाने के लिए एक खांचा बना रहता है।जिसकी सहायता से खाई या झाड़ियों वाली स्थान में  जरीब के द्वारा नाप ली जाती है। खूँटी।  खूँटी का कार्य  खूँटी को सर्वेक्षण स्टेशनो की पहचान करने के लिए उस बिंदु पर गाड़ दी जाती है।ये लकड़ी  की बनी होती है। उसके ऊपर स्टेशन का नाम लिख दिया जाता है। उसकी लम्बाई 15 cm से 20 cm तक होती है। इसका शीर्ष 5cmx5cm वर्गाकार होता है।  साहुल।साहुल का कार्य  साहुल के द्वारा कम्पास , लेवल, थियोडोलाइट, आदि उपकरण को स्टेशन बिंदु पर केन्द्रण करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त ढालू जमीन पर जरीब मापन करते समय तथा आरेखन दण्ड को ठीक ऊर्ध्वाधर खड़ा करने में साहुल द्वारा जांच की जाती है। ये धातु का शंकुनुमा पिण्ड होता है।जिसके शीर्ष में एक मजबूत डोरी बंधी होती हैं। झाडियाँ । झाडियाँ का कार्य आरेखन दण्डो दूर से पहचान करने के लिये,इनके शीर्ष पर कपड़े की चौकोर  लाल या सफेद रंग की झाडियाँ बांध दी जाती है।   समकोण...

what is surveying in civil engineering,Surveying ,सर्वेक्षण Part 1

  what is surveying in civil engineering सर्वेक्षण  (Survey) Surveying is the art to determing the relative position of a points and the distance and angles between them.   सर्वेक्षण सिविल इंजीनियरिंग की वो शाखा है।जिसके अन्तर्गत किसी एक बिंदू के सापेक्ष किसी दूसरे बिंदू की भूतल पर या भूगर्भ या आकाश में ऊंचाई या गहराई का पता लगाया जाता है। उसे ही सर्वेक्षण कहा जाता है। सर्वेक्षण सिविल इंजीनियरिंग का अत्यंत महत्वपूर्ण भाग है। इसकी सहायता से ही किसी क्षेत्र के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।तथा निर्माण संबंधी ड्राइंग बनाकर निर्माण कराया जाता हैं।  सर्वेक्षण का उद्देश्य ( purpose of survey) सर्वेक्षण के निम्न उद्देश्य है। 1 सर्वेक्षण क्षेत्र का नक्शा या मानचित्र बनाना, क्षेत्र से प्राप्त मापो को ड्रॉइंग सीट पर आलेखित करना। 2 विभिन्न निर्माण कार्यों के लिए स्थल का चयन करना जैसे , रेल , सड़क, पाइप लाइन ,सीवर लाइन आदि। 3 सतह पर किसी बिंदू की स्थिति ज्ञात करना। 4 विभिन्न प्राकृतिक और कृत्रिम बिंदुओ की ऊंचाई और गहराई का पता लगाना। 5 विभिन्न निर्माण कार्यों के लि...