भारत का मध्य कालीन इतिहास भाग 2
खिलजी वंश
खिलजी वंश का संथापक जलालुद्दीन फिरोज खिलजी था।
उसने गुलाम वंश को समाप्त करके 13 जून ,1290 ई० में खिलजी वंश की स्थापना की।
उसकी राजधानी किलोखरी थी।
उसने पहले उदारपूर्ण कार्य किया जिससे जनता उसकी ओर आकृष्ट हो जाए उसके बाद उसने दिल्ली में प्रवेश किया।.जलालुद्दीन फिरोज खिलजी एक दयालु स्वभाव तथा सहृदयता वाला व्यक्ति था जिसे उसकी कमजोरी समझ कर जगह-जगह विद्रोह के झण्डे बुलंद हो गए।
जैसे कड़ा के सूबेदार छज्जू ने ‘सुल्तान मुगीसुद्दीन’ की उपाधि धारण करके अपने नाम के सिक्के चलवाए व खुतबा पढ़वाए. अगस्त, 1290 ई. में सुल्तान के पुत्र अरकली खाँ ने छज्जू को पराजित किया. इसके बाद भी सुल्तान ने उसके साथ उदारतापूर्ण व्यवहार करके उसे मुल्तान भेज दिया।
उसके बाद कड़ा का प्रबन्ध सुल्तान ने अपने दामाद अलाउद्दीन को सौंप दिया।इसी बीच 1292 ई. में मंगोल नेता हलाकू खाँ के पौत्र अब्दुल्ला ने पंजाब पर आक्रमण किया।जिससे लड़ने के लिए फिरोज खिलजी ने अलाउद्दीन खिलजी को भेजा। अलाउद्दीन खिलजी ने उसे पराजित किया तथा बाद में उससे सन्धि कर ली। मंगोल वापस लौटने को तैयार हुए. परन्तु चंगेज खाँ के पौत्र उलगू ने लगभग 4000 मंगोलों के साथ इस्लाम ग्रहण करके भारत में रहने का निर्णय लिया.
फिरोज खिलजी के शासन काल (खिलजी वंश) की सबसे बड़ी उपलब्धि देवगीरि की विजय थी. इसका श्रेय सुल्तान के दामाद अलाउद्दीन खिलजी को जाता है. उसी के नेतृत्व में तुकों का प्रथम अभियान दक्षिण भारत की ओर गया. तुर्को ने देवगीरि के यादव राजा रामचन्द्र और उसके बेटे शंकरदेव को हराकर उन्हें दिल्ली सल्तनत की अधीनता स्वीकार करवा ली.
शंकरदेव को हराकर अलाउद्दीन खिलजी को अपार सम्पत्ति मिली जिसमें 50 मन सोना, 7 मन हीरे-मोती और अन्य लूट का माल कई हजार घोड़ों और 40 हाथियों पर लाद कर लाया गया. अलाउद्दीन खिलजी के इस अभियान फिरोज खिलजी बहुत प्रसन्न हुआ । उसे बधाई देने स्वयं कड़ा की ओर चल पड़ा.
रास्ते में गंगा नदी के तट पर जब वह अलाउद्दीन खिलजी के गले मिल रहा था। तभी अलाउद्दीन खिलजी ने पहले से योजना बनाकर उसकी हत्या करवा दी ।. इस प्रकार अलाउद्दीन खिलजी 22 अक्टूबर, 1996 ई. को अपने चाचा की हत्या करवा कर सुल्तान बना।
अलाउद्दीन खिलजी
अलाउद्दीन के बचपन का नाम अली तथा गुरशास्प था।
अलाउद्दीन 22 अक्टूबर 1296 ई को सुल्तान बना।
अलाउद्दीन एक शक्तिशाली राजा था,दिल्ली के शासकों में अलाउद्दीन के पास सबसे विशाल सेना थी।
घोड़ा दागने और सैनिकों का हुलिया लिखने की प्रथा की शुरुआत अलाउद्दीन ने की।
वो एक महत्वाकांक्षी पुरुष था तथा जलालुद्दीन खिलजी के समय उसने अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए.
सत्ता के लिए उसने अपने चाचा की हत्या करवा दी ।. उसका राज्यारोहण दिल्ली में स्थित बलबन के ‘लाल महल’ में हुआ।
उसे सिकन्दर की तरह ही दुनिया को जीतने का जुनून था। परंतु अपने एक मंत्री की सलाह पर उसने ये इरादा छोड़ दिया और सिकन्दर द्वितीय (सानी) की उपाधि धारण की तथा खलीफा की सत्ता को मान्यता प्रदान करते हुए ‘यास्मिन-उल-खिलाफत-नासिरी-अमीर-उल-मिमुनिन’ की उपाधि ग्रहण की।
अलाउद्दीन अपने विद्रोहियों के लिए बहुत ही कठोर था।उसके शासन के आरम्भिक वर्षों में ही अनेक विद्रोह खड़े हुए जिन्हें कुशलता पूर्वक दबा लिया गया. अपने विरोधियों को समाप्त करने के लिए अलाउद्दीन ने अत्यन्त कड़ाई व निष्ठुरता से काम लिया. उसने मलिका जहाँ को कारावास में डाल दिया व उसके दो पुत्रों को अन्धा करवा दिया।
उसने उन मंगोलो को भी नही बक्शा जो मुसलमान होकर दिल्ली में बस गए थे उसने लगभग 2000 मंगोलों (जो इस्लाम ग्रहण करके दिल्ली के आसपास बस गए थे तथा गुजरात की लूट का बड़ा हिस्सा मांग रहे थे और विद्रोह पर उतारू हो गए थे) को मौत के घाट उतार दिया. उनका दमन नुसरत खाँ ने किया.।
अलाउद्दीन के कार्य
1- अलाउद्दीन ने भू राजस्व की दर को बढ़ाकर उपज का 1/2 भाग कर दिया।
2- इसने व्यापारियों में बेईमानी रोकने के लिए कम तौलने वाले व्यक्ति के शरीर से मांस काट लेने का आदेश दिया था।
3- इसने अपने शासन में मूल्य नियंत्रण प्रणाली को दृढ़ता से लागू किया।
4- इसने जमैयत खाना मस्जिद , अलाई दरवाजा , सीरी का किला व हजार खंभा महल का निर्माण कराया।
5- दैवी अधिकार के सिद्धांत को अलाउद्दीन ने चलाया था।
6-अलाउद्दीन द्वारा नियुक्त परवाना नवीस नामक अधिकारी वस्तुओ की परमिट जारी करता था।
7- राजस्व सुधार के लिए अलाउद्दीन ने सर्वप्रथम मिल्क ,इनाम एवम वक्फ के अंतर्गत दी गई भूमि को वापस लेकर उसे खालसा भूमि में बदल दिया।
8- अलाउद्दीन के द्वारा लगाए जाने वाले 2 नए कर
१ चराई कर _ दूधारू पशुओ पर लगाया जाता था।
२ गढ़ी कर - घरों और झोपड़ी पर लगाया जाता था।
अलाउद्दीन खिलजी(Alauddin Khilji) का साम्राज्य विस्तार
(1) मुल्तान विजय
मुल्तान को जीतने के लिए अलाउद्दीन ने अपने दो योग्य सेनापतियों-उलुग खाँ तथा जफर खाँ को मुल्तान विजय के लिए भेजा. .
(2) गुजरात विजय
24 फरवरी, 1299 ई. को शाही सेनाओं ने नुसरत खाँ व उलुग खाँ के नेतृत्व में गुजरात की ओर प्रस्थान किया. वहाँ का शासक कर्ण बघेला शीघ्र ही पराजित हुआ और पर्याप्त लूटपाट के पश्चात् इस राज्य को सल्तनत में मिला लिया गया. सोमनाथ के मन्दिर को भी नष्ट-भ्रष्ट किया गया तथा खिलजी सेना ने कैम्बे (खम्भात) नामक समृद्ध बन्दरगाह को भी लूटा.
(3) रणथम्भौर
1299 ई. में उलुग खाँ व नुसरत खाँ को हम्मीर देव के विरुद्ध भेजा गया. प्रथम चरण में शाही सेना पराजित हुई तथा नुसरत खाँ मारा गया। इससे सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी को स्वयं रणथम्भौर की ओर प्रस्थान करना पड़ा उसने दुर्ग को घेर लिया. राजपूत बड़ी वीरता से लड़े तथा अन्त में वीरगति को प्राप्त हुए व राजपूत नारियों ने जौहर का मार्ग अपनाया. रणथम्भौर की विजय से सुल्तान को आगे की विजयों के लिए प्रोत्साहन मिला.
(4) मेवाड़
. 28 जनवरी, 1303 ई. को सुल्तान ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया. 7 महीने के कठिन संघर्ष के पश्चात् 26 अगस्त, 1303 ई. को इस किले पर अधिकार कर लिया गया. राणा रतन सिंह वीरगति को प्राप्त हुआ व रानी पद्मिनी या पद्मावती ने अनेक राजपूत नारियों के साथ जौहर की प्रथा का पालन किया. चितौड़ का नाम खिज्राबाद रखा गया तथा 7 या 9 वर्षीय युवराज खिज्रखाँ को वहाँ का प्रमुख नियुक्त किया गया, जिसका संरक्षक मलिक शाहीन ‘नायब बारबक’ को बनाया गया.
अलाउद्दीन खिलजी (Alauddin Khilji) को मंगोलों से निपटने हेतु दिल्ली वापस आना पड़ा. खिज्र खाँ राजपूतों के कड़े विरोध के कारण चित्तौड़ पर ज्यादा देर तक नियन्त्रण नहीं रख सका. सुल्तान ने खिज्र खाँ को चित्तौड़ खाली करने का आदेश दे दिया तथा वहाँ की जिम्मेदारी राजपूत सरदार मालदेव को सौंप दी.।
(vi) सेवाना
3 जुलाई, 1308 ई. को शाही सेनाओं ने सेवाना के परमार शासक शीतलदेव के विरुद्ध कूच किया. 10 नवम्बर, 1308 ई. को शीतलदेव मारा गया तथा सेवाना का प्रशासन कमालुद्दीन गुर्ग को सौंप दिया गया.
(7 ) जालौर
जालौर के शासक कन्हार देव ने 1304 ई. में सुल्तान की अधीनता स्वीकार की थी. मगर धीरे-धीरे उसने अपने को पुनः स्वतन्त्र कर लिया. 1305 ई. में कमालुद्दीन गर्ग ने उसे पराजित करके उसकी हत्या कर दी तथा जालौर पर मुसलमानों का अधिकार हो गया. जालौर के समर्पण के साथ ही राजपूताना की सारी प्रमुख रियासतें एक के बाद एक अधिकार में ले ली गई. जैसलमेर, रणथम्भौर, चित्तौड़, सेवाना तथा जालौर और उनके साथ लगी. रियासतें-बेंदी, मण्डोर तथा टोंक सब आक्रांत की जा चुकी थीं.
1311 ई. तक उत्तर भारत में केवल नेपाल, कश्मीर व असम ही ऐसे भाग शेष बचे थे जिन पर अलाउद्दीन अधिकार न कर सका था. उत्तर भारत को विजय करके सुल्तान ने दक्षिण भारत की ओर अपना ध्यान दिया
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