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Compass survey 2 ( meridian,याम्योत्तर)

 याम्योत्तर (Meridian)

कोई संदर्भ दिशा जिसके संदर्भ में किसी सर्वे रेखा की दिशा ज्ञात की जाती है।उसे याम्योत्तर कहते है।

ये तीन प्रकार के होते है।

(1) भौगोलिक, या सत्य या दिगांश याम्योत्तर (Geographic, true or Azimuth Meridian)

(2) चुम्बकीय याम्योत्तर (Magnetic Meridian)

(3) स्वैच्छिक याम्योत्तर(Arbitrary Meridian) 


(1) भौगोलिक, या सत्य या दिगांश याम्योत्तर (Geographic, true or Azimuth Meridian)

ये एक काल्पनिक तल होता है।जो किसी बिंदु से पृथ्वी के उत्तर दक्षिणी ध्रुव से पास होता हुआ माना जाता है।ये उस बिन्दु का सत्य याम्योत्तर कहलाता है।

सत्य याम्योत्तर की दिशा अपरिवर्तनीय तथा यथार्थ है।इसे भौगोलिक याम्योत्तर भी कहते है। चूंकि भौगोलिक याम्योत्तर की दिशा निर्धारण करना काफी कठिन होता है, इसी कारण सामान्य सर्वेक्षण में चुम्बकीय याम्योत्तर लिया जाता है।

नोट सत्य याम्योत्तर खगोलीय प्रेक्षणों द्वारा ज्ञात किया जाता है।

सत्य दिकमान (True Bearing)

सत्य याम्योत्तर से कोई सर्वे रेखा जो क्षैतिज कोण बनाती है, वो कोण उस। सर्वे रेखा का सत्य दिकमान कहलाता है। क्योंकि सत्य याम्योत्तर की दिशा सदा स्थिर रहती है, अत: रेखा का सत्य दिकमान भी नहीं बदलता है।

नोट भूपृष्ठीय सर्वेक्षण में सत्य दिकमान लिए जाते है।

सत्य दिकमान को डिगांश(Azimuth) भी कहते है। 

(2) चुम्बकीय याम्योत्तर(Magnetic Meridian) 

चुम्बकीय याम्योत्तर उस दिशा को कहते है जहा पर चुम्बकीय सूई स्वतंत्र रूप से लटकाने पर रुकती है। परन्त  इस बात का ध्यान रखना चाहिए की चुम्बकीय सूई पर किसी प्रकार का कोई स्थानीय आकर्षण न लग रहा हो।

चुम्बकीय याम्योत्तर किसी भी चुम्बकीय सूई के द्वारा ज्ञात किया जा सकता है।

चुम्बकीय याम्योत्तर की दिशा समय समय पर बदलती रहती है।

 चुम्बकीय दिकमान (Magnetic Bearing)

किसी भी सर्वे रेखा तथा चुम्बकीय याम्योत्तर के बीच बनने वाले कोण को चुम्बकीय दिकमान  कहते है।

नोट दिकसूचक हमेशा चुम्बकीय दिकमान  को हो दर्शाता है।

यदि चुम्बकीय याम्योत्तर बदलता है तो चुम्बकीय दिकमान भी बदल जाता है। अत: सर्वेक्षण के कार्यों में इसका ध्यान रखा जाता है।

(3) स्वैच्छिक याम्योत्तर (Arbitrary Meridian)

ये याम्योत्तर अपनी सुविधा के अनुसार किसी स्थिर बिंदु से किसी अनुकूल दिशा में मान लिया जाता है।

किसी छोटे क्षेत्र में सर्वे करने के लिए स्वैच्छिक याम्योत्तर  अपनी सुविधा के अनुसार मान लिया जाता है।

स्वैच्छिक याम्योत्तर चिमनी ,मंदिर का कलश , खम्बे का सिरा ,आदि को भी माना जा सकता है।

स्वैच्छिक दिकमान (Arbitrary Bearing)

स्वैच्छिक याम्योत्तर और सर्व रेखा के बीच की दूरी को स्वैच्छिक दिकमान कहते है। 

किसी स्थान पर सत्य याम्योत्तर ज्ञात करना 

इसके लिए निम्न विधियां अपनाई जा सकती है।

(1) घड़ी के द्वारा (By a wrist Watch)

किसी स्थान पर खड़े होकर घड़ी को हाथ में ले अब घड़ी की छोटी सूई को सूर्य की तरफ करे और इस रेखा तथा 12 की अंक वाली रेखा के मध्य बनने वाले कोण को समद्वेभाजित करे द्विभाजक रेखा सत्य दक्षिण दिशा दर्शाएगी।

(2) सूर्य की छाया द्वारा सत्य दिशा ज्ञात करना (By sun's shadow)

किसी खुले समतल मैदान में एक नुकीली शीर्ष वाली छड़ गाड़ दे । छड़ को केंद्र मानकर दो या तीन वृत जमीन पर खींच ले।12 बजे से पूर्व एक एक घंटे के अंतराल पर छड़ की ऊपरी नोक के छाया बिंदु को भूमि पर खींचे वृत्तो पर चिन्हित कर ले माना ये बिंदु A,B, और C है इसी प्रकार 12 बजे के बाद ,एक घंटे के अंतराल पर उपरोक्त की भांति छाया बिंदु उसी क्रम में वृत्तो पर लगा ले मान लो ये G,F और E है।

अब एक ही वृत के दो बिंदुओ, A तथा E को मिला कर उसका अर्धक छड़ के बिंदु O से मिलाते हुए बाहर को बढ़ाए ।ये रेखा सत्य याम्योत्तर की दिशा को बताएगी 


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