वेब व्याकुँचन( Web Buckling)
वेब बकलिंग ट्रांसवर्सली लागू होने वाले केंद्रित बलों से उत्पन्न होते हैं। ... वेब का बकलिंग तब होता है जब वेब बहुत पतला होता है और फ्लेंज से स्थानांतरित किए जा रहे अनुप्रस्थ बल को वहन नहीं कर पाता है। इसमें वितरण कोण 45° लिया जाता है।
Fwb= (b1+n1)tw.fc
Fwb= वेब व्याकुँचन सामर्थ्य
b1= धारण लम्बाई
tw= वेब मोटाई
fc= अनुमेय सम्पीडन प्रतिबल
n1= काट के मध्य पर 45° वितरण रेखा
वेब विकलांगता ( Web Crippling)
जब धरन में बिंदु भार लगा हो तो बिंदु भार के कारण धरन की वेब में किसी बिंदु पर धरन के नीचे समुचित धारण क्षेत्रफल न होने के कारण पंगु होने की संभावना होती है इसे ही वेब विकलांगता अथवा वेब का पंगु होना कहा जाता है। यहां फ्लेंज के ऊपरी रेशे से भार के लिए वितरण कोण 30° माना जाता है।
वेब विकलांगता सामर्थ्य आलंब पर नियमानुसार ज्ञात करेंगे।
Fcrip = (b1+n2)tw fyw
b1= धारण लम्बाई
n2= फ्लैंज से वितरण की लम्बाई
tw,= वेब की मोटाई
fyw= वेब की अभिकाल्पन पराभव सामर्थ्य
संघटित धरन की चरण बद्ध अभिकल्पन
चरण 1
धरन पर आने वाले संभावित भार का अनुमान करना।
चरण 2
अधिकतम बंकन आघूर्ण और अधिकतम कर्तन बल ज्ञात करना ।
Zreq = M/σbc
चरण 3
इस्पात तालिका की मदद से ऐसे काट का चयन करें जिसका आकृति मापांक अधिकतम हो ।बाकी आवरण पट्टिका द्वारा आवश्यक आकृति मापांक दिया जायेगा।
चरण 4
निम्न समीकरण से आवरण पट्टिका की आवश्यक चौड़ाई और मोटाई की गणना की जायेगी।
Aa= Btfp
चरण 5
लगाया गया अगणित आकृति मापांक का मान आवश्यक आकृति मापांक से अधिक होना चाहिए ।
चरण 6
चयनित खण्ड का फ्लैंज आवरण पट्टिका से जोड़ और आवरण पट्टिका की कटौती करना ।
चरण 7
तनन और संपीडन के अधिकतम प्रतिबलो की गणना करना। तनन में बंकन प्रतिबल की जांच करना।
चरण 8
अपरुपण कर्तन की गणना करना तथा इसका मान अनुमेय कर्तन प्रतिबल 0.4fy से कम होना चाहिए।
चरण9
धरन की विकलांगता में आवश्यकतानुसार जांच करना।
शहतीर / धन्नी / कडी (Purlin)
शहतीर एक प्रकार की धरने हैं को ढालू छत व्यवस्था में प्रयोग की जाती है।ये मुख्य राफ्टर के ऊपर नत अवस्था में ट्रस में धारित होती है। छत कैंची के शीर्ष कार्ड में बंकन रोकने के लिए सैद्धान्तिक रूप से पर्लिन को केवल पैनल बिन्दु पर स्थापित किया जाना चाहिए है। बडे ट्रस मे यथा सम्भव पर्लिन को नजदीक रखना अधिक मित्तव्ययी होगा। भारत मे जहां एस्बेस्टस चादरे प्रयुक्त होती है।
AC चादरो मे अनुदैर्ध्य चढ़ाव 150 mm से कम नहीं देते। पर्लिन अन्तराल का समन्वय चादर की लम्बाई के साथ इस तरह लिया जाता है कि अनुदैर्ध्य पर्लिन पर आये जिसपर वो सीधे जुड़े हो। पर्लिन का अंतराल इस प्रकार तय किया जाए की चादर की कटाई न हो। व्याहारिक रूप से पर्लिन का अंतराल 1.35 m से 1.4 m होना चाहिए।
सामान्यत: पर्लिन 0.6m से लगभग 2 m तक के अंतराल पर रखी जाती है और इनकी अधिकतम अपेक्षित गहराई से विस्तृति का अनुपात लगभग 1/24 हैं ।
शुद्धालम्बित पर्लिन में अधिकतम बंकन आघूर्ण (wl)^2/8 होगा
सतत धरन के लिए wl)^2/10 होगा।
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GK
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ReplyDeleteAshish Kumar Pandey
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ReplyDeleteParmanand Yadav
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ReplyDeleteArun kumar
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