अप्रत्यक्ष या अन्योन्य आरेखन (In direct or Reciprocal Ranging),,,,,
जब दो स्टेशनों के बीच की दूरी बहुत अधिक हो या बीच में कोई ऊंची पहाड़ी आ जाए जिससे दोनो स्टेशन साफ न दिखाई देते हो तो ऐसी अवस्था में अप्रत्यक्ष या अन्योन्य आरेखन करना पड़ता है।
इस विधि मे दोनो मुख्य बिंदुओ के मध्य अंतरवर्ती बिंदु स्थापित किए जाते है। इस कार्य में 4 व्यक्तियों की आवश्कता होती है।
माना दो मुख्य बिंदु A और B हैं, इनके बीच कोई ऊंची पहाड़ी है। अब इनके बीच अंतरवर्ती बिंदु स्थापित करने है। ये अंतरवर्ती बिंदु X और Y है। अब दो सहायक हाथो में आरेखन दण्ड लेकर अंदाज से जरीब रेखा के जितने निकट हो सके , ऐसे दो बिंदुओ X1 और Y1 पर खड़े हो जाते है,ताकि X1 पर खड़े व्यक्ति Y1 व बिंदु B पर गाड़ा हुआ दण्ड दिखाई दे और इसी प्रकार Y1 पर खड़े व्यक्ति को X1 व बिंदु A नजर आए।
अब X1 पर खड़ा व्यक्ति Y1 पर खड़े व्यक्ति को ऐसे बिंदु Y2 पर आने को कहेगा, जो X1 व B की ठीक सीध में X2 पर आने को कहेगा।
अब X2 वाला व्यक्ति Y2 को नए सीध बिंदु Y3 पर आने को कहेगा ये क्रम तब तक चलता रहेगा, जब तक दोनो व्यक्ति अपने नए स्थान ग्रहण करते हुए ,X तथा Y बिंदुओ पर नहीं आ जाते। अब X तथा Y पर आरेखन दण्ड गाड़ दिए जाते है।
यही A,X,Y तथा B सभी चारो बिंदु एक सीध में होंगे।
घाटी में अन्योन्य आरेखन( Recipro cal Ranging Across a Valley)
घाटी में निम्न प्रकार से आरेखन किया जाता है।
माना घाटी में दो सर्वक्षण बिंदु A तथा B हैं उनकी सीध में अंतरवर्ती बिंदु P,QX,Y स्थापित करना है।
सबसे पहले A पर खड़ा सर्वेक्षक अपने सहायक को बिंदु B की सीध में इस प्रकार आने को कहेगा कि उसके आरेखन दण्ड का ऊपरी सिरा B पर गाड़े गए आरेखन दण्ड का निचला सिरा एक सीध रेखा में आ जाए ये बिंदु X बिंदु कहलाएगा । यहां पर एक दण्ड गाड़ दिया जाता है।
अब सर्वेक्षक सहायक को एक और आरेखन दण्ड अन्य बिंदु Y पर आने को कहेगा ,जहा से X पर गाड़े गए दण्ड का निचला सिरा ,Y पर गाड़े गए दण्ड के ऊपरी बिंदु के सीध में आ जाए अब Y पर एक आरेखन दण्ड गाड़ दिया जाएगा। इस प्रकार बिंदु X,Y तथा B एक सीध में होंगे ।
दूसरे चरण में ,सर्वेक्षण बिंदु B पर आ जायेगा और सहायक को ऐसे बिंदु पर खड़ा होने को कहेगा ताकि उसके दण्ड का शीर्ष तथा आरेखन दण्ड A का निचला सिरा एक सीध में आ जाए। ये अंतरवर्ती बिंदु P होगा। इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए ,बिंदु Q भी ज्ञात कर लिया जाता है और आरेखन दण्ड गाड़ दिया जाता है।
अब P,Q,Y,X सभी बिंदु एक सीध में आ जाते है।
यादृच्छिक रेखा आरेखन (Random line Ranging)
इस प्रकार का आरेखन ऐसी जगह पर किया जाता है। जहां से दोनो स्टेशन और उनके बीच के बिंदु भी दिखाई न पड़ते हो,जैसे जब कोई रेखा घने जंगल में से गुजर रही हो तब इस प्रकार का आरेखन किया जाता है।इसके अतिरिक्त जब सर्वेक्षण रेखा पर कोई ऊंची लंबी दीवार आ जाए अथवा अंतिम स्टेशन किसी गहरी खाई में स्थित हो तब भी ये विधि ठीक रहती है।
विधि
माना AB एक सर्वक्षण रेखा है।जो घने जंगल से निकल रही है और अंतिम अथवा मध्यवर्ती कोई भी स्टेशन आपस में दिखाई नहीं पड़ते है। सर्वक्षण रेखा AB की अनुमानित दिशा में कोई उपयुक्त रेखा AB' Y डाले जो जंगल से हट कर निकले। इस रेखा पर कोई ऐसा बिंदु खोजे जहां से सर्वेक्षण रेखा का स्टेशन B साफ साफ दिखाई पड़े और इस बिंदु से निकाला गया लम्ब स्टेशन B को छुए। माना ये बिंदु B' है।
अब रेखा AB' तथा BB' की दूरी शुद्धता से नाप ले।
सर्वेक्षण रेखा AB की लम्बाई =√(AB')^2+(BB')^2
अब रेखा AB' पर अंतरवर्ति बिंदु C' व D' से लम्ब CC' व लम्ब DD' की लम्बाई समरूपी त्रिभूजों के द्वारा निम्न प्रकार ज्ञात की जाती है।
CC'=(AC'/AB')x BB'
DD'=(AD'/AB')xBB'
अब बिंदु C' व D' पर प्रकाशिये गुनिया की सहायता से CC' व DD' पर लम्ब खसके डाले ।यदि दृष्टि रेखा के आगे कोई पेड़ आ जाता है, तो उसे हटा दे ।
ढालु रेखा पर जरीब मापन( Changing on slopy Ground)
दो ढालु बिंदुओ के बीच क्षैतिज दूरी निम्न प्रकार ज्ञात की जाती है।
(i) सीधी नाप विधि या सीढी नाप विधि
(ii) कोणीय नाप विधि
(iii) कर्ण बढ़ती विधि
(i) सीधी नाप विधि या सीढी नाप विधि
इस विधि मे ढालू सतह को छोटी छोटी क्षैतिज सीढ़ियों में बांट लिया जाता है।और सभी क्षैतिज दूरी को माप कर सबको जोड़ लिया जाता है।मापन का कार्य ढाल के ऊपरी सिरे से नीचे की ओर करना चाहिए इससे कार्य करने में आसानी रहती है।और परिशुद्धता भी रहती है।
माना दो बिंदु A और B जो ढालू जमीन पर स्थित है, के मध्य क्षैतिज दूरी ज्ञात करनी है पिछला जरीब वाला अपने हाथ में जरीब अथवा फीते का शून्य वाला सिरा पकड़कर बिंदु A पर खड़ा हो जायेगा और अगला जरीब वाला दूसरा सिरा पकड़ कर तथा आरेखन दण्ड लेकर , उतरती ढाल पर चलते हुए ऐसे बिंदु पर जाके रुकेगा कहा तक वह जरीब को ठीक क्षैतिज खीच कर रख सके।
मान लो ये बिंदु P1 हैं। पिछला जरीब वाला उसे रेखा A-B की सीध में आने को कहेगा।
अब अगला जरीब वाला जरीब को खीच कर क्षैतिज कर लेगा और AP1 की दूरी पढ़ लेगा और इसके साथ ही P1 के ठीक ऊर्ध्वाघर बिंदु P पर आरेखन दण्ड गाड़ देगा।बिंदु P की शुद्ध स्थिति P1 पर साहुल लटका कर सुआ गिराकर ज्ञात की जाती है।
अब पिछला जरीब वाला आगे बढ़ता है और बिंदु P पर आ जाता है और अगला जरीब वाला Q1 पर चला जाता है और उपरोक्त प्रक्रिया दोहराई जाती है।इस प्रकार पूरी ढाल को माप लिया जाता है।उपरोक्त सभी क्षैतिज दूरियां का योग अर्थात AP 1+P1Q1+Q1B1 ढालू रेखा के समतुल्य क्षैतिज दूरी होगी ।
नोट प्रक्रिया में सभी सीढ़ियों की दूरी समान रखना जरूरी नहीं हैं। सीढी की ऊंचाई अगुवा के आंख तल से कम होनी चाहिए।
(ii) कोणीय नाप विधि
इस विधि मे भूमि की ढालू सतह की दूरी तथा ढाल का कोण नापा जाता हैं और ज्यामिति नियम से क्षैतिज दूरी की गणना की जाती है। ये विधि समान ढाल वाली भूमि के लिए ठीक रहती है।
जब भूमि की ढाल समान न हो तो विभिन्न ढाल दूरियों को अलग अलग खण्डो में बांट लिया जाता है और प्रत्येक खंड की दूरी तथा ऊर्ध्वाघर कोण माप लिया जाता है। अब सबकी क्षैतिज दूरी ज्ञात करके जोड़ ली जाती है।
भूमि की ढाल एबनी लेवल , थियोडोलाइट अथवा नतिमापी क्लीनोमीटर से ज्ञात की जाती है।
सामान्य कार्य के लिए क्लीनोमीटर से ढाल मापना आसान पड़ता है।
क्लीनोमीटर
क्लीनोमीटर के तीन भाग होते है।
(1) दृष्टि रेखा
(2) आशंकित चाप
(3) हल्का साहुल
जब क्लीनोमीटर क्षैतिज होता है,तब साहुल का धागा आशंकित
चाप के शून्य को छूता है। ढाल का पता लगाने के लिए ,दृष्टि रेखा द्वारा लक्ष्य को साधा जाता है ऐसा करने पर साहुल ठीक लटकता हुआ ,चाप पर ढाल का कोण दर्शाता है।
यदि AB की ढाल दूरी D तथा भूमि की ढाल का कोण φ हैं,तो AB की क्षैतिज दूरी निम्न होगी
AC/AB=ccosφ।
Nidhi singh
ReplyDeletePRESENT
Present sir
DeleteP
ReplyDeleteP
ReplyDeleteSangharsh gupta
ReplyDeleteP sir
P
ReplyDeleteArpita Sharma
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P
ReplyDeleteP sir
ReplyDeleteP sir
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