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Compass survey part 2

 दिकसूचक का अस्थायी समायोजन( Temporary adjustment of compass)

अस्थायी समायोजन 

इसे दिकसूचक का स्टेशन समायोजन भी कहते है।इसमें मुख्य तीन क्रियाएं है।

(1) केन्द्रण (Centering)

दिकसूचक को ट्राइपॉड पर कसकर इसको स्टेशन के ठीक केंद्र बिंदु पर रखना केन्द्रण कहलाता है।केन्द्रण की जांच साहुल से या कंकर गिरा कर की जाती है।

(2) समतलन(Levelling) 

दिकसूचक का समतलन करने से आशंकित चक्री स्वतंत्र होके घूमती है।जिससे रीडिंग में त्रुटि नहीं आती है। समतलन की जांच करने के लिए एक पेंसिल को कांच ढक्कन पर चला कर समतलन की जांच कर ली जाती है।

(3) प्रिज्म का फोकसन (Focussing of prism) 

प्रिज्म को उपर नीचे खिसका कर इसको चक्री के ऊपर ऐसे सेट किया जाता है।की चक्री निशान आवर्धित हो सके और आसानी से पढ़े जा सके।

 दिकसूचक प्रयोग करते समय सावधानियां ( Precautions to be taken when using the compass)

दिकसूचक को प्रयोग करते समय निम्न सावधानियां रखनी चाहिए।

(1) दिकसूचक स्थापन 

दिकसूचक को ट्राइपॉड पर अच्छे से कस कर समतलन की जांच कर लेना चाहिए।

(2) सूई का कम्पन 

चुम्बकीय सूई की हरकत को बंद करने के लिए,दिकसूचक की रोक पिन को दबाए और धीरे से छोड़ दे।

(3) लोहे की वस्तुओ से आकर्षण 

सर्वे करते समय आस पास से लोहे की वस्तु को हटा दे 

(5) इस्पतिय संरचनाओ से बचाव 

दिकसूचक को रेल की पटरी ,लोहे के पोल ,चिमनी, इस्पात के पुल आदि के निकट नहीं सेट करना चाहिए।

(6) स्थानीय आकर्षण की जांच 

सर्वे रेखाओं का अग्र तथा पश्च दिकमान लेकर स्थानीय आकर्षण की जांच कर ले।दोनो पाठयांक में अंतर 180° होना चाहिए।

(7) कार्य के समय सावधानी 

दिकसूचक पर कार्य करते समय विशेष सावधानी बरतनी चाहिए जैसे पाठयांक पढ़ते समय उपकरण या ट्राइपॉड नहीं पकड़ना चाहिए।

रेखाओं के दिकमान (Bearing of survey lines)

सर्वेक्षण रेखा का दिकमान (Bearing)

चंक्रम सर्वेक्षण  में सर्वे रेखाओं की लम्बाई के साथ साथ इनकी दिशा भी ज्ञात की जाती है।ये दिशा या तो किसी अन्य रेखा के सन्दर्भ में अथवा किसी विशेष संदर्भित दिशा या याम्योत्तर से ज्ञात की जाती है।

नोट जब सर्वे रेखा का किसी अन्य सर्वे रेखा के सन्दर्भ में झुकाव ज्ञात किया जाता है।तो उसे कोण कहते हैं।

जब सर्वे रेखा की दिशा याम्योत्तर के संदर्भ से ज्ञात की जाती है।तब ये दिकमान कहलाता है। 

याम्योत्तर (Meridian)

कोई संदर्भ दिशा जिसके संदर्भ में किसी सर्वे रेखा की दिशा ज्ञात की जाती है।उसे याम्योत्तर कहते है।

ये तीन प्रकार के होते है।

(1) भौगोलिक, या सत्य या दिगांश याम्योत्तर (Geographic, true or Azimuth Meridian)

(2) चुम्बकीय याम्योत्तर (Magnetic Meridian)

(3) स्वैच्छिक याम्योत्तर(Arbitrary Meridian) 


(1) भौगोलिक, या सत्य या दिगांश याम्योत्तर (Geographic, true or Azimuth Meridian)

ये एक काल्पनिक तल होता है।जो किसी बिंदु से पृथ्वी के उत्तर दक्षिणी ध्रुव से पास होता हुआ माना जाता है।ये उस बिन्दु का सत्य याम्योत्तर कहलाता है।

सत्य याम्योत्तर की दिशा अपरिवर्तनीय तथा यथार्थ है।इसे भौगोलिक याम्योत्तर भी कहते है। चूंकि भौगोलिक याम्योत्तर की दिशा निर्धारण करना काफी कठिन होता है, इसी कारण सामान्य सर्वेक्षण में चुम्बकीय याम्योत्तर लिया जाता है।

नोट सत्य याम्योत्तर खगोलीय प्रेक्षणों द्वारा ज्ञात किया जाता है।

सत्य दिकमान (True Bearing)

सत्य याम्योत्तर से कोई सर्वे रेखा जो क्षैतिज कोण बनाती है, वो कोण उस। सर्वे रेखा का सत्य दिकमान कहलाता है। क्योंकि सत्य याम्योत्तर की दिशा सदा स्थिर रहती है, अत: रेखा का सत्य दिकमान भी नहीं बदलता है।

नोट भूपृष्ठीय सर्वेक्षण में सत्य दिकमान लिए जाते है।

सत्य दिकमान को डिगांश(Azimuth) भी कहते है। 

(2) चुम्बकीय याम्योत्तर(Magnetic Meridian) 

चुम्बकीय याम्योत्तर उस दिशा को कहते है जहा पर चुम्बकीय सूई स्वतंत्र रूप से लटकाने पर रुकती है। परन्त  इस बात का ध्यान रखना चाहिए की चुम्बकीय सूई पर किसी प्रकार का कोई स्थानीय आकर्षण न लग रहा हो।

चुम्बकीय याम्योत्तर किसी भी चुम्बकीय सूई के द्वारा ज्ञात किया जा सकता है।

चुम्बकीय याम्योत्तर की दिशा समय समय पर बदलती रहती है।

 चुम्बकीय दिकमान (Magnetic Bearing)

किसी भी सर्वे रेखा तथा चुम्बकीय याम्योत्तर के बीच बनने वाले कोण को चुम्बकीय दिकमान  कहते है।

नोट दिकसूचक हमेशा चुम्बकीय दिकमान  को हो दर्शाता है।

यदि चुम्बकीय याम्योत्तर बदलता है तो चुम्बकीय दिकमान भी बदल जाता है। अत: सर्वेक्षण के कार्यों में इसका ध्यान रखा जाता है।

(3) स्वैच्छिक याम्योत्तर (Arbitrary Meridian)

ये याम्योत्तर अपनी सुविधा के अनुसार किसी स्थिर बिंदु से किसी अनुकूल दिशा में मान लिया जाता है।

किसी छोटे क्षेत्र में सर्वे करने के लिए स्वैच्छिक याम्योत्तर  अपनी सुविधा के अनुसार मान लिया जाता है।

स्वैच्छिक याम्योत्तर चिमनी ,मंदिर का कलश , खम्बे का सिरा ,आदि को भी माना जा सकता है।

स्वैच्छिक दिकमान (Arbitrary Bearing)

स्वैच्छिक याम्योत्तर और सर्व रेखा के बीच की दूरी को स्वैच्छिक दिकमान कहते है। 

किसी स्थान पर सत्य याम्योत्तर ज्ञात करना 

इसके लिए निम्न विधियां अपनाई जा सकती है।

(1) घड़ी के द्वारा (By a wrist Watch)

किसी स्थान पर खड़े होकर घड़ी को हाथ में ले अब घड़ी की छोटी सूई को सूर्य की तरफ करे और इस रेखा तथा 12 की अंक वाली रेखा के मध्य बनने वाले कोण को समद्वेभाजित करे द्विभाजक रेखा सत्य दक्षिण दिशा दर्शाएगी।

(2) सूर्य की छाया द्वारा सत्य दिशा ज्ञात करना (By sun's shadow)

किसी खुले समतल मैदान में एक नुकीली शीर्ष वाली छड़ गाड़ दे । छड़ को केंद्र मानकर दो या तीन वृत जमीन पर खींच ले।12 बजे से पूर्व एक एक घंटे के अंतराल पर छड़ की ऊपरी नोक के छाया बिंदु को भूमि पर खींचे वृत्तो पर चिन्हित कर ले माना ये बिंदु A,B, और C है इसी प्रकार 12 बजे के बाद ,एक घंटे के अंतराल पर उपरोक्त की भांति छाया बिंदु उसी क्रम में वृत्तो पर लगा ले मान लो ये G,F और E है।

अब एक ही वृत के दो बिंदुओ, A तथा E को मिला कर उसका अर्धक छड़ के बिंदु O से मिलाते हुए बाहर को बढ़ाए ।ये रेखा सत्य याम्योत्तर की दिशा को बताएगी।

चुम्बकीय याम्योत्तर की प्रणालियां 

इसकी निम्न दो विधियां है।

(1) पूर्ण वृत दिकमान प्रणाली ( whole circle Bearing System)(W.C.B system)

 (2) चतुर्थांश दिकमान प्रणाली (Quadrant Bearing System)(Q.B. System)or (Reducing Bearing System)

(1) पूर्णवृत दिकमान प्रणाली  whole circle Bearing System)(W.C.B system)

इस प्रणाली में किसी रेखा का दिकमान चुम्बकीय उत्तर से दक्षिणावर्त दिशा (सूई के दिशा में )में मापा जाता है। एक डिग्री में 60'( मिनट) तथा एक मिनट में 60" लिए जाते है। अत: रेखा का दिकमान 0° से 360° कुछ भी हो सकता है।



 (2) चतुर्थांश दिकमान प्रणाली   (Quadrant Bearing System)(Q.B. System)or (Reducing Bearing System)

इस प्रणाली में किसी रेखा का दिकमान उत्तर अथवा दक्षिण दिशा जो भी रेखा के पास हो उससे रेखा का कोण माप लिया जाता है।ये दक्षिणावर्त या वामावर्त किसी भी दिशा में मापा जा सकता है।

इसमें चित्र के अनुसार चार चतुर्थांश बना लिया जाता है।जिससे रेखा किसी एक चतुर्थांश में स्थित हो जाए इसी कारण इस प्रणाली में रेखा के साथ उसका चतुर्थांश भी लिखा जाता है।

शुरू का शब्द N या S होगा मध्य में कोण का मान और आखिर  का E या W होगा।

नोट इस प्रणाली में रेखा का मान ,90° से अधिक नहीं हो सकता है।इसके बाद इसका चतुर्थांश बदल जायेगा।

सर्वेक्षक दिकसूचक में यही प्रणाली अपनाई जाती है।




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