भारत से बड़े देश। क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत से बड़े देश।
देश क्षेत्रफल
रूस 170.75 लाख वर्ग किलोमीटर
कनाडा 99.84 लाख वर्ग किलोमीटर
U.S.A 96.26 लाख वर्ग किलोमीटर
चीन 95.96 लाख वर्ग किलोमीटर
ब्राजील 85.12 लाख वर्ग किलोमीटर
ऑस्ट्रेलिया 76.86 लाख वर्ग किलोमीटर
देश की अंतिम सीमा बिंदु
दक्षिणतम बिन्दु - इन्दिरा प्वाइंट ( ग्रेट निकोबार द्वीप)
उत्तरतम बिन्दु - इन्दिरा काल ( जम्मु कश्मीर )
पश्चिमोत्तम बिन्दु - गौरा मोता (गुजरात )
पूर्वोत्तम बिन्दु - किबिथु ( अरुणाचल प्रदेश )
मुख्य भूमि की दक्षिण सीमा कन्याकुमारी 8° 4'अक्षाशं ( तमिलनाडु )
पड़ोसी देशों के मध्य सीमा विस्तार।
पड़ोसी देश। सीमा की लंबाई (किलोमीटर में )
भारत - बांग्लादेश 4096.7 (परिचालन शुन्य रेखा)
संबंधित राज्य 5 -
(i) पश्चिम बंगाल
(ii) मेघालय
(iii) मिजोरम
(iv) त्रिपुरा
(v) असोम
भारत -चीन 3488 (मैकमोहन रेखा )
संबंधित राज्य 5 -
(i) जम्मू कश्मीर
(ii) हिमाचल प्रदेश
(iii) उत्तराखण्ड
(iv) सिक्किम
(v) अरुणाचल प्रदेश
भारत - पाकिस्तान 3323 रेडक्लिफ रेखा
संबंधित राज्य 4 -
(i) गुजरात
(ii) राजस्थान,
(iii) पंजाब
(iv) जम्मू कश्मीर
भारत नेपाल। 1751 km
संबंधित राज्य 5
(i) उत्तर प्रदेश,
(ii) बिहार
(iii) पश्चिम बंगाल
(iv) सिक्किम
(v) उत्तराखण्ड
भारत म्यांमार 1643 km (इंडो बर्मा बैरियर )
संबंधित राज्य 4
(i)अरुणाचल प्रदेश
(ii) नागालैंड
(iii) मिजोरम
(Iv) मणिपुर
भारत भूटान। 699km
संबंधित राज्य 4
(i) पश्चिम बंगाल
(ii) सिक्किम
(iii) अरुणाचल प्रदेश
(iv) असोम
भारत अफगानिस्तान। 106 km डूरण्ड रेखा
संबंधित राज्य 1
जम्मू कश्मीर (पाक अधिकृत )
भारत की भूगर्भिक संरचना
भारत में मोड़दार पर्वतों की उत्पत्ति चार अवस्थाओं में हुई है।
प्रथम चरण में अरावली पर्वत की उत्पत्ति हुई जो सर्वाधिक पुराना है।तथा पूर्व कैम्ब्रियन युगीन धारवाडियन चट्टानो से निर्मित है।
अपक्षय एवं अपरदन के कारण आज ये एक अवशिष्ट पर्वत के रूप में विद्यमान है।
(8) अरावली पर्वत की उत्पत्ति गोंडवाना लैण्ड से हुई है।जो विश्व का सबसे प्राचीनतम भू खण्ड माना जाता है।
तीसरे चरण
तीसरे चरण में हर्सीनियन युगीन पर्वतों का निर्माण हुआ, जो भारत में विंध्याचल एवं सतपुरा, विंध्यन भू सन्नति से उत्पन्न हुए है।
चौथे चरण के तृतीयक युग में अल्पाइन क्रम के पर्वतों का निर्माण हुआ जिसमे भारत में वृद्ध , मध्य तथा शिवालिक हिमालय श्रेणियाँ आती है।जो नवीनतम मोड़दार पर्वत है।
नोट उपरोक्त चारो मोड़दार श्रेणियाँ में बलुआ पत्थर ,चुना पत्थर जैसी अवसादी चट्टाने तथा स्लेट और संगमरमर जैसी कायान्तरित चट्टाने पाई जाती है।
दक्षिण का प्रायेद्वीपीय पठार
इसका निर्माण प्री कैम्ब्रियन काल में भू पृष्ठ के शीतलन और दृढ़करण से हुआ।ये भाग कभी भी समुंद्र में पूर्णतया नहीं डूबा और इस पर विवर्तनिक बलो का विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। इस भाग की नदिया वृद्ध अवस्था में पहुंच कर आधार तल को प्राप्त कर चुकी है।ये गोडवाना लैंड का ही एक भाग है।
आर्केडियन क्रम की चट्टाने
(1) ये चट्टाने मानव जीवन से भी अधिक पुरानी है।अत्यधिक रूपांतरण होने के कारण ये अपना असली रूप खो चुकी है।
(2) इन चट्टानों में जीवाश्म का अभाव है।
(3) ये चट्टाने नीस, ग्रेनाइट,और शिष्ट प्रकार की है।
(4) इनका विस्तार कर्नाटक , तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश,मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा,झारखंड तथा राजस्थान में है।
धारवाड़ क्रम की चट्टाने
(1) ये आर्केडियन क्रम के प्राथमिक चट्टानों के अपरदन व निक्षेपण से बनी चट्टाने होती है।
(2) ये परतदार होती है।
(3) इसमें जीवाश्म नहीं मिलते है।
(4) ये चट्टाने भारत में पाई जाने वाली चट्टानों में आर्थिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण चट्टाने है।
(5) धारवाड़ काल में ही अरावली पहाड़ियों का निर्माण
मोड़दार पर्वतों के रूप में हुआ था।
कुड़प्पा क्रम की चट्टाने
इसका निर्माण धारवाड़ क्रम के चट्टानों के अपरदन व निक्षेपण से हुआ है।
इस चट्टान में भी जीवाश्म का आभाव है।
(3) इन चट्टानों का नामकरण आंध्र प्रदेश के कुड़प्पा जिले के नाम पर हुआ है।
(4) धारवाड़ चट्टानों की अपेक्षा ये चट्टाने आर्थिक दृष्टि से कम महत्वपूर्ण है।
विंध्यक्रम की चट्टाने
(1) ये चट्टाने कुडप्पा चट्टानों के बाद बनी है।
(2) इन चट्टानों का नाम विंध्याचल के नाम पर पड़ा है।
(3) इस क्रम की चट्टाने लगभग एक लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली है।झारखंड के सासाराम एवं रोहतास क्षेत्र से लेकर पश्चिम में राजस्थान के चित्तौड़गढ़ क्षेत्र तथा उत्तर में आगरा से लेकर दक्षिण में होशंगाबाद तक फैली हुई है।
गोंडवाना क्रम की चट्टाने
(1) इनका निर्माण ऊपरी कोर्बोनीफेरस युग से जुरैसिक युग के बीच हुआ ।
(2) ये कोयले के लिए विशेष महत्वपूर्ण है।
(3) भारत का 90% कोयला इन्ही चट्टानों में पाया जाता है।
(4) इनमे मछलियां व रेंगने वाले जीवों के अवशेष प्राप्त होते है।
(5) दामोदर, राजमहल, महानदी,और गोदावरी व उसकी सहायक नदियों तथा कच्छ काठियावाड़ और पश्चिम राजस्थान सोनघाटी और वर्धा घाटियों में इन चट्टानों का सर्वोत्तम रूप मिलता है।
दक्कन ट्रैप
(1) इनका निर्माण मोजोइक महाकल्प के क्रिटेशियस कल्प मे हुआ था।
(2) दक्कन ट्रैप महाराष्ट्र का अधिकांश भाग ,गुजरात और
मध्य प्रदेश में फैला है।
(3) राजमहल ट्रैप का निर्माण इससे भी पहले जुरैसिक कल्प में हो गया था। इन कठोर चट्टानों के विखंडन से ही काली मिट्टी (रेगुर मिट्टी) का निर्माण हुआ।
ये भी जाने .......
टेथिस सागर के दक्षिण भाग में एक प्रायद्वीप था,जिसे गोंडवाना लैंड कहा जाता था,जिसके अवशेष आज दक्षिण अमेरिका के पूर्वी भाग,अफ्रीका, प्रायद्वीपीय भारत और ऑस्ट्रेलिया के रूप में विद्यमान है। टेथिस सागर के उत्तर में भी ऐसा ही महाद्वीप स्थित था ,जिसे अंगारा लैंड कहते है।
-- दक्कन के लावा पठार अपरदन से उपजाऊ काली मिट्टी निर्मित हुई है जो कपास , सोयाबीन और चने की खेती की लिए सर्वाधिक उपयुक्त है।
-- छोटा नागपुर के पठार को भारत का रूर प्रदेश भी कहते है, क्योंकि यहां खनिज संसाधन का विपुल भंडार है।
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